उप-राष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने राजनीतिक दलों से मांग करते हुए कहा है कि वे जनप्रतिनिधियों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करें। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को विधायी सदनों में जनता की आवाज़ उठानी चाहिए।
आई.आई.टी मद्रास के छात्र विधायी परिषद के सदस्यों से बातचीत करते हुए श्री नायडू ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को गरीबों और वंचित लोगों की पीड़ा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो युवाओं की बढ़ती आकांक्षाओं को समझें और जो उनकी आवाज उठाएं। उन्होंने कहा कि सदन के बहुमूल्य समय को नष्ट करना अच्छा नहीं होगा, बल्कि यह केवल समाचारपत्रों की सुर्खियां ही बनेगा।
उपराष्ट्रपति ने सकारात्मक चर्चा की जरूरत पर जोर दिया, जो भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है। उन्होंने छात्रों का आह्वान करते हुए कहा कि भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने की दिशा में सक्रिय भागीदारी करते हुए अग्रणी भूमिका निभाएं।
श्री नायडू ने कहा कि विश्वविद्यालयों अथवा उच्चतर शिक्षण संस्थाओं को समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, विज्ञान और उद्योग जगत के बीच संबंधों की स्थापना करने में सार्थक भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली को परीक्षा अथवा डिग्री पाने की प्रणाली से निकलकर ज्ञान-सृजन प्रणाली की ओर बढ़ना चाहिए।
भारत के लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को विकास प्रक्रिया का स्तंभ बताते हुए, उप-राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में भारत की जनता के आदर्श और उनकी आकांक्षाएं अंतर्निहित हैं।
उप-राष्ट्रपति ने आई.आई.टी जैसे अग्रणी संस्थाओं से कहा कि गांव के जीवनयापन को समझने के लिए वे छात्रों को ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्होंने कहा कि इससे छात्रों को सहानुभूति और दया की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी और वे अंतत: बेहतर मानव भी बन पाएंगे।
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