Anushtha Singh
राजस्थान में जारी सियासी उठा – पटक के बीच छोटे से लेकर बड़े नेता अपनी राय दे रहे हैं, सूबे की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे बिल्कुल ख़ामोश हैं, कुछ इस हद तक कि कई लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि ख़ामोशी में आपके क्या राज़ छुपा है? विरोधी पार्टी की सरकार गिरने और अपने दल के फिर से सत्ता में पहुंचने जैसे अहम मामले में राजे का कोई सीधा बयान आना तो दूर, पिछले हफ़्ते भर में उन्होंने ‘सचिन-पॉलिटिकल-अफ़ेयर’ पर एक ट्वीट तक नहीं किया है.
वसुंधरा राजे किसी युवा नेता, और वो भी पिछड़ी जाति से ताल्लुक़ रखनेवाले नेता के पार्टी में आने को अपने लिए ख़तरे के तौर पर देख सकती हैं जो आज नहीं तो भविष्य में उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. वसुंधरा राजे पार्टी की उन नेताओं में से हैं जो मोदी-शाह की जोड़ी के सामने अभी तक पूरी तरह नतमस्तक नहीं हुई हैं और अपनी बात रखने और उसे मनवाने से गुरेज़ नहीं करतीं.पार्टी ने जब दो साल पहले वर्तमान केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बीजेपी अध्यक्ष बनाने की कोशिश की थी तो राजे ने इसमें अड़ंगा डाल दिया था और अमित शाह की तमाम कोशिशों के बावजूद मामला लंबे वक़्त तक लटका रहा और आख़िरकार सतीश पुनिया के नाम पर समझौता हो सका.
भाजपा के तरफ से राजे को मंत्री पद देकर केंद्र में लाने की कोशिशें भी अबतक नाकाम रही हैं. इस बीच पूरा मामला एक ऐसा रूख़ लेता नज़र आ रहा जिससे ये भी कहना मुश्किल होता जा रहा है कि सचिन कांग्रेस में ही रहेंगे या पार्टी छोड़ देंगे. हालांकि सचिन अभी भी कांग्रेस के सदस्य हैं. ना तो उन्हें पार्टी से निकाला गया है और न ही उन्होंने इस्तीफ़ा दिया है.सचिन पायलट ने कई बार इसे दोहराया है कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे और साथ ही ये भी कि इस तरह की बातें गांधी परिवार से उनके रिश्ते ख़राब करने के लिए उड़ाई जा रही हैं. लेकिन इतना तो साफ़ है की सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बिछाई शतरंज की चाल में फँस गए.
ऐसे में उनके लिए कांग्रेस में बने रहने का रास्ता बहुत मुश्किल लगता है, बिना कुछ हासिल हुए तेवर बदलने से उनके आत्मसम्मान और छवि को ठेस लगेगी,
और दूसरी ओर अगर वो बाग़ी सुर बरक़रार रखते हैं तो गहलोत खेमा उनके लिए नई मुश्किल खड़ी कर सकता है. सचिन के पार्टी में बने रहने का विकल्प तो है ही, लेकिन इसमें हाईकमान को आकर सुलह-सफ़ाई करवाना पड़ेगा, वो हाईकमान ने अभी तक नहीं किया है.असली निराशा हाईकमान को लेकर है. आज कांग्रेस में हाईकमान है ही नहीं.
वसुंधरा राजे की पूरे मामले में भूमिका देखकर इतना तो तय है की अगर बीजेपी में सचिन पायलट का दाख़िला होता है तो वो उतना ही हंगामा भरा होगा जितना कांग्रेस से उनका निकलना होगा. वसुंधरा राजे को भी मालूम है कि ‘उनको इस पूरे उठापटक से कोई विशेष लाभ नहीं मिलनेवाला तो वो क्यों बोलें’?
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