26 नवंबर 2019 कौशलेंद्र राज शुक्ला
कुर्सी को लेकर 1 महीने तक चली सियासी खिंचातान के बाद यह साफ हो गया कि महाराष्ट्र की राजनीति का असली चाणक्य कौन है ?और यह भी तय हो गया कि सरकार किसकी बनेगी? तमाम सियासी अटकलें लगी लेकिन हुआ वही जिसका नतीजे आने के बाद सबको उम्मीद थी।आइए आज आपको बताते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कुछ दिनों में क्या कुछ हुआ?महाराष्ट्र में बीते महीने की 24 तारीख को चुनाव के नतीजे आए जिसमें भाजपा शिवसेना को सबसे ज्यादा 159 सीटें मिली तो वहीं कांग्रेस -एनसीपी को 100 सीटें मिली।जिसके बाद सबको उम्मीद थी कि भाजपा शिवसेना सरकार बनाएगी और पूरे 5 साल तक महाराष्ट्र की जनता को एक स्टेबल गवर्नमेंट देगी।उम्मीद इस बात से और मजबूत हो जाती थी कि दोनों पार्टियां एक ही विचारधारा की है और जिसके चलते महाराष्ट्र को एक मजबूत और स्थाई सरकार मिलेगी। लेकिन शिवसेना के पुत्र मुंह या फिर कुर्सी के लालच ने जनता की है उम्मीद तोड़ दी।जहां शिवसेना 50-50 के फार्मूले पर अड़ी रही तो वहीं बीजेपी पूरे 5 साल अकेले ही राज्य करना चाहती थी ,पर दोनों पार्टियों में बात नहीं बनी जिसका नतीजा यह हुआ कि कुर्सी की चाहत के चक्कर में शिवसेना और बीजेपी का 30 साल पुराना गठबंधन टूट गया।इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग उठने लगी तो नियम के मुताबिक राज्य के राज्यपाल भगत सिंह को शायरी ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया लेकिन नंबर ना होने के कारण भाजपा ने सरकार बनाने से मना कर दिया।इसके बाद नियम के मुताबिक राज्य की दूसरी नंबर की सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने का मौका दिया गया लेकिन दिए गए समय में शिवसेना अपना बहुमत साबित नहीं कर पाई और उसने राज्यपाल से और समय मांगा लेकिन शिवसेना को समय नहीं मिला। जिसके बाद एनसीपी को सरकार बनाने का न्योता दिया गया।
एनसीपी के पास शाम 8:30 बजे तक का समय था लेकिन राज्य में राष्ट्रपति शासन6:30 बजे ही लगा दिया गया जिसके बाद राष्ट्रपति शासन की टाइमिंग पर भी सवाल उठने लगे तमाम तरीके की बातें कहीं गई जिसका नतीजा कुछ नहीं हुआ ,,,,और इसके बाद भी पार्टियों के बीच सियासी गठजोड़ की कोशिश होती रही।शरद पवार एक बार मोदी से मिले तो यह अटकलें लगी थी एक नया सियासी गठबंधन देखने को मिलेगा ।लेकिन जब मीटिंग के बाद दोनों नेता बाहर आए तो उन्होंने अटकलों को यह कहकर टाल दिया कि किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए बैठक थी और कुछ नहीं ।इसके बाद भी पार्टियों के नेताओं के बीच मैराथन बैठकों का दौर जारी रहा इस उम्मीद में कि जल्द ही कोई बड़ा ऐलान देखने को मिलेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही जिसकी उम्मीद किसी को ना थी। जिसके बाद यह सिद्ध हो गया कि सियासत की जुबान इतनी लचीली होती है कि रात के अंधेरे में भ्रष्टाचार का विरोध करने वाली भाजपा ने एनसीपी के साथ गठबंधन कर लिया जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और वह भी सिर्फ इस चक्कर में कि सियासत का सूरज अगली सुबह उनकेउनके घर में उगेगा।आपको बता दें कि हुआ कुछ ऐसा कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने विधायकों के समर्थन वाली चिट्ठी राज्य के राज्यपाल को सौंप दी जिसके अगली ही सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली ,,,,तो वही अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री की।इसके बाद एनसीपी दो खेमे में बट गई जिसके बाद अजित पवार के बीजेपी खेमे में जाने के बाद कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना बैकफुट में नजर आ रहे थे और विकल्प तलाश रहे थे।इसके बाद कमान संभाली एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने हालांकि बीजेपी यह दावा करती रही कि उनके पास 170 विधायकों का समर्थन है।इसके बावजूद शरद पवार ने पहले अजित पवार वाले एनसीपी विधायकों को वापस लाने की कवायद शुरू कर दी तो वहीं कांग्रेस से शिवसेना ने कानूनी लड़ाई शुरू कर दी जैसे -जैसे सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई वैसे -वैसे महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर भी साफ होने लगी। जहां कुछ नेताओं ने अजीत की वापसी का प्रयास किया तो वही कुछ नेताओं ने सरकार गठन को लेकर प्रक्रिया शुरू की।सोमवार को कांग्रेस एनसीपी के विधायकों ने एकजुट होकर शक्ति प्रदर्शन किया और जिसके साथ साथ यह साफ हो गया कि बहुमत का आंकड़ा बीजेपी के पास नहीं !बल्कि एनसीपी के पास है ,इसके बाद इंतजार था सुप्रीम कोर्ट के फैसले का और जिसमें जीत हुई एनसीपी -कांग्रेस- शिवसेना की और नतीजा यह हुआ कि फ्लोर टेस्ट से पहले ही सीएम और डिप्टी सीएम ने इस्तीफा दे दिया और सरकार गिर गई और नई सरकार गठन की तारीख भी तय हो गई! जी हां 1 दिसंबर को राज्य में एक नए फार्मूले के साथ सरकार बनेगी अब देखना यह होगा कि दो अलग विचारधारा वाली पार्टी पूरे 5 साल तक सरकार कैसे चलाएंगी । इस पूरे प्रकरण के बाद यह तो कहा जा सकता है नैतिकता की अपेक्षा सियासत में रखनी ही नहीं चाहिए
कुर्सी के मोह में शिव सेना हिंदुत्व की क़ुर्बानी देने के लिए तैयार हो गई
‘सेक्युलर’कांग्रेस ने’सांप्रदायिक’शिव सेना के साथ हाथ मिला लिया
NCP को भ्रष्ट बताने वाली BJP ने घोटालों के आरोपी अजीत पवार को एक झटके में डिप्टी सीएम बना दिया। सिर्फ नेताओं को राजनीति करनी है मतलब यह कि राज करने की नीति।
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