27 March 2020,Shivani
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ 21 दिन की जंग का ऐलान किया है । 24 मार्च ठीक रात्रि 8:00 बजे नरेंद्र मोदी ने लोगों को संबोधित किया। उनकी स्पीच की शुरुआत उन्होंने “जनता कर्फ्यू”पर सभी देशवासियों का अभिवादन करते हुए की। सभी देशवासियों से अपने अंदाज में कोरोना के भयंकर होने वाले परिणामों का जिक्र किया। पीएम मोदी ने आश्वासन देते हुए लोगों से 21 दिन संपूर्ण देश में लॉक डाउन की घोषणा की। 22 मार्च जनता कर्फ्यू के ट्रायल को 21 दिन के लिए बढ़ा दिया गया है। जो कुछ भी हो रहा है । देश के एक-एक नागरिक की जिंदगी को बचाने के लिए हो रहा है । लेकिन क्या आप जानते हैं लॉक डाउन क्या है ?जो पूरे देश में कर्फ्यू की तरह काम कर रहा है। किसके पीछे की पूरी जानकारी आइए बताते हैं ।
वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ दुनिया भर की सरकारें ऐतिहासिक लड़ाई लड़ रही है वहीं भारत सरकार ने इस महामारी से लड़ने के लिए 123 साल पुराने कानून का सहारा लिया है जी हां 123 साल पुराने कानून का सहारा।
Epidemic disease act 1897 1897:-यह कानून 1896 में प्लेग महामारी पर काबू पाने के लिए लागू किया गया था । इस कानून के तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को जेल में डाल सकती है । जो दिशा निर्देशों का पालन नहीं करता पाया जाएगा।
इस कानून में चार प्रावधान दिए हुए हैं ।यह कानून तभी लागू किया जाता है जब कोई भी प्रयास व उपाय के जरिए महामारी को फैलने से रोकने में नाकामयाब होते हैं। इस कानून के तहत केंद्रीय या राज्य सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं।सरकार परिस्थिति को देखते हुए उन इलाकों को डेंजर जोन घोषित कर सकती है,जहां महामारी फैलने का अधिक खतरा होता है। इसके तहत हर तरीके से जांच करने का भी अधिकार सरकार को होता है।
इस कानून के सेक्शन 2A में केंद्र सरकार को यह अधिकार होता है कि वह विदेशी यात्रा पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगा सकती है । गौरतलब है जब यह कानून बना तब देशों की यात्रा पानी के जहाज़ द्वारा की जाती थीं। किसी भी महामारी की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की आशंका होती है। ऐसे में सरकारें इस कानून का उपयोग करती थी। वर्तमान में यह यात्रा वायुयान द्वारा की जाती है जैसा की देखा जा सकता है चीन से यह वायरस दूसरे देशों में यात्रियों के जरिए पहुंचा। इसी चैन के साथ आगे दूसरे देशों में बढ़ रहा है।
उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान
इस कानून का उल्लंघन करने पर व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान शामिल है।1959 में जब उडिशा में हैजा की बीमारी फैली थी। उड़ीसा के एक डॉक्टर पर उड़िशा सरकार ने कारवाई की थीं। डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया था।यह मामला राज्य के पुरी जिले का था। इस कानून के तहत यदि कोई डॉक्टर या सरकारी पदों पर नियुक्त जिम्मेदार अधिकारी कार्य करने से मना करते हैं तो उन पर कार्यवाही की जाने का प्रावधान है।
जब इस कानून को ब्रिटिश सरकार में लागू किया गया था। इस कानून की काफी आलोचना की गई थी । इसे आम जनता पर अत्याचार बताया गया था।सरकार इस कानून के तहत उन व्यक्तियों को आइसोलेट कर रही थी,जिन पर पलेग से संक्रमित होने का शक होता था। ब्रिटिश अधकारियों ने लोगों पर कठोर कार्यवाही की थी। जिसके खिलाफ भारतीय क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक के अखबार केसरी में ब्रिटिश अधिकारी वॉल्टर के खिलाफ कई लेख भी लिखें गए थे।
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