निकिता, 11/05/2020.

एक दूसरे से हाथ मिलाने का चलन कुछ हज़ार सालों पुराना है, लेकिन अब आशंकाएं हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के बाद की दुनिया में यह सिलसिला खत्म हो जाएगा. अमेरिका के व्हाइट हाउस की कोविड 19 टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. एंथनी फॉकी भी कह चुके हैं कि अब हाथ नहीं मिलाए जाने चाहिए. लेकिन , यह जानना दिलचस्प है कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय चलनों में से इस एक की शुरूआत कैसे हुई और अब इसका भविष्य कैसे धुंधला रहा है. हाथ मिलाना सदियों पुराना तौर तरीका रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत को लेकर अस्पष्टताएं हैं. हिस्ट्री.कॉम के मुताबिक एक लोकप्रिय थ्योरी है कि यह शांति का इरादा जताने के मकसद से शुरू हुआ था. खाली दाहिना हाथ आगे बढ़ाकर दो लोग यह ज़ाहिर करते थे कि उन्होंने कोई हथियार नहीं छुपा रखा है. साथ ही, हाथ पकड़कर ऊपर से नीचे की तरफ इसलिए हिलाया जाता था कि अगर आस्तीन के अंदर कोई चाकू या ऐसा हथियार छुपा हो तो झटककर बाहर गिरे. दूसरी थ्योरी यह भी रही है कि यह सिलसिला वचनबद्धता या संकल्प जैसे इरादों को ज़ाहिर करने के लिहाज़ से शुरू हुआ होगा. दो लोग जब एक दूसरे का हाथ थामते होंगे तो ज़ाहिर करते होंगे कि उनके बीच मज़बूत संबंध है और वो जो कह रहे हैं, वह बात महत्व रखती है. इतिहासकार वॉल्टर बकर्ट के मुताबिक बातों से जल्दी व स्पष्टता के साथ इस तरह से कोई समझौता ज़ाहिर हो सकता है. हाथ मिलाने का सबसे पुराना सबूत नौ शताब्दी ईसा पूर्व की एक नक्काशी के तौर पर मिलता है. हिस्ट्री.कॉम के मुताबिक इस नक्काशी में एसायरियन राजा और बेबीलोन के राजा को हाथ मिलाते हुए उकेरा गया है. इसके अलावा, महान इतालवी कवि होमर ने इलियड और ओडिसी जैसी अमर रचनाओं में संकल्प और विश्वास जताने के प्रसंगों में हाथ मिलाए जाने का ज़िक्र कई बार किया है. प्राचीन काल में हाथ मिलाने के संदर्भ कई अर्थों में मिलते हैं, लेकिन आधुनिक दुनिया में रोज़मर्रा के तौर तरीकों में यह चलन करीब 300 साल पुराना है. 17वीं सदी में धार्मिक संगठन के कुछ लोगों ने समझा कि झुकने और हैट उतारकर अभिवादन की तुलना में हाथ मिलाने का तरीका ज़्यादा समतावादी है. 1800 ईस्वी तक तो हाथ मिलाने के बारे में बाकायदा गाइडलाइन्स और मैनुअल्स बनने लगे थे. कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के बाद अमेरिका ही नहीं बल्कि कई देश हर हाल में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की हिदायत देते हुए लॉकडाउन में ढील दे रहे हैं. विशेषज्ञों के हवाले से बीबीसी के लेख में कहा गया है कि यह भी संभव है कि दुनिया दो तरह के लोगों में बंट जाए, एक, जो स्पर्श को ठीक समझें और दूसरे जो दूरी बनाने का सही मानें. ऐसा हुआ, तो कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक डिसॉर्डर देखे जा सकते हैं. हैंडशेक के एक विकल्प के तौर पर अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में फिस्ट बम्प यानी मुट्ठी को टकराने का चलन बढ़ रहा था, लेकिन कोविड 19 महामारी के बाद की दुनिया में शायद यह भी लोकप्रिय नहीं रहेगा क्योंकि स्पर्श की दूरी को लेकर एक लहर दौड़ेगी. ऐसे में नमस्ते, सलाम या अपना ही हाथ अपने ही सीने पर रखकर अभिवादन के चलन ज़्यादा आम होने की उम्मीद नज़र आ रही है. गालों को चूमना तो अब ज़्यादा अपनेपन नहीं बल्कि ज़्यादा खतरे का तौर तरीका होगा।
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