7 जनवरी 2020 कौशलेंद्र राज शुक्ला
दिल्ली जिसे सत्ता का केंद्र कहा जाता है या कुछ इस तरह से कह लीजिए कि जिसे देश की राजधानी के साथ राजनीति की भी राजधानी कहा जाता है। कल उसी दिल्ली में चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राज्य चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया। जानकारी के लिए आपको बता दें कि अगले महीने की 8 तारीख को दिल्ली में चुनाव होगा और इस चुनाव के नतीजे 11 फरवरी को आएंगे। आपको बता दें कि दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं और जिस में 67 सीटें आम आदमी पार्टी के पास है तो 3 पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है।अगर बात 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव की की जाए तो सभी साथ की 7 सीटें भाजपा के पाले में गई थी खैर लोकसभा चुनाव देश के मुद्दे पर होता है और विधानसभा चुनाव राज्य के मुद्दों पर । फिलहाल के तौर पर राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है अगर बात वादे पूरे करने की की जाए तो आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल में काफी कुछ किया है और लगातार दिल्ली के विकास की बातें भी कर रहे हैं ।अपने 5 साल के छोटे कार्यकाल में केजरीवाल ने दिल्ली की तस्वीर जो जनता के सामने रखी है वो काबिले तारीफ है दिल्ली के सरकारी स्कूलों को केजरीवाल ने इस तरह से बनवाया है जिसको देखकर पता नहीं चलता कि यह प्राइवेट स्कूल है या सरकारी ।दिल्ली में केजरीवाल ने बिजली सस्ती की है पीने का साफ पानी मुहैया कराने की बात भी वो अक्सर कहते हैं और फ्री वाईफाई का वादा भी अभी उन्होंने हाल ही में दिल्ली में पूरा किया है।अपनी 5 साल सदी सरकार चलाने के बाद केजरीवाल लगातार अपनी जीत की बात कर रहे हैं वैसे सिर्फ केजरीवाल ही नहीं आम जनता भी केजरीवाल के कामों से काफी खुश नजर आ रही है ।जो केजरीवाल के लिए दोबारा सत्ता में वापसी की उम्मीद को बरकरार रखे हुए हैं कल चुनाव तारीखों का जैसे ही ऐलान हुआ केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि “मैं किसी को गाली देकर वोट नहीं मांगूंगा सिर्फ दिल्ली के विकास के मुद्दे पर वोट मांगूगा अगर हमने और हमारी सरकार ने काम किया है तो आप हमें वोट दीजिए अथवा नहीं दीजिए ।साथ ही साथ उन्होंने कहा हमने काम किसी भी पार्टी देखकर या किसी के धर्म को देखकर नहीं किया हमने काम विकास को देखकर किया है हमने स्कूल बनवाए जिसमें हिंदू भी पढ़ते हैं और मुसलमान भी पढ़ते हैं”। केजरीवाल का कल दिया हुआ बयान यह दर्शाता है कि कितने कम समय में साहब जनता के दिल जीतने की कला बखूबी सीख गए हैं।अगर बात भारतीय जनता पार्टी की की जाए तो उनके पास अभी नेतृत्व का कोई चेहरा नहीं है और बीजेपी की इस बात का फायदा भी केजरीवाल उठा रहे हैं जबसे तारीख का ऐलान हुआ है तब से बीजेपी के महकमे में भी काफी हलचल मच गई है प्रेस कांफ्रेंस और ट्यूटो का दौर लगातार जारी है अमित शाह अपनी रैलियों में लगातार केजरीवाल को झूठ बोलने वाला और दिल्ली के लिए कामना करने वाला बता रहे हैं। अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली चुनाव के लिए नारा दिया है “जहां झुग्गी वहीं मकान” वह लगातार प्रदूषण के मुद्दे पर सरकार को घेर कर निशाना बना रहे हैं। पर सोचने वाली बात तो यह है कि अभी तक दिल्ली की चुनाव रैलियों में आर्टिकल 370 और राम मंदिर का जिक्र नहीं हुआ जिसको देखकर ऐसा लगता है कि झारखंड हार के बाद भारतीय जनता पार्टी को यह समझ में आ गया है कि देश के चुनाव में देश के मुद्दे काम आते हैं और राज्य के चुनाव में राज्य के मुद्दे काम आते हैं। अगर बात कांग्रेस की की जाए तो कांग्रेस इस चुनाव को लेकर ज्यादा एक्टिव नहीं दिख रही कांग्रेस का दिल्ली का सियासी इतिहास उठाकर देखा जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस का राज पूरे 15 साल दिल्ली में रहा पर आम आदमी पार्टी आने के बाद दिल्ली में कांग्रेस का वजूद धीमे-धीमे कम हो गया। जिसका नतीजा कि कांग्रेस ने अभी किसी भी चेहरे को दिल्ली चुनाव के लिए आगे नहीं किया है जिसका फायदा भी केजरीवाल को मिलता दिख रहा है ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि कांग्रेसी चुनाव के लिए तैयार नहीं है या फिर पार्टी का कॉन्फिडेंस लेवल जीरो है।झारखंड चुनाव जीतने के बाद ऐसा लग रहा था कि पार्टी दिल्ली में भी जोड़ तोड़ कर मेहनत करेगी लेकिन हालिया परफॉर्मेंस देखने के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस जरा भी दिलचस्पी दिल्ली के लिए नहीं दिखा रही। चुनाव आयोग के तारीखों के ऐलान के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि यह चुनाव जेएनयू में हुई हिंसा और सुरक्षा व्यवस्था की बुनियाद पर लड़ा जाएगा पर शायद ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा।अगर चुनाव केजरीवाल जीते हैं और मौजूदा समय से कम सीटें मिलती हैं तो भी नुकसान सिर्फ केजरीवाल का होगा और फायदा कांग्रेस या बीजेपी का । खैर ये नफा-नुकसान ,फायदा -मुनाफा ,घटा तय करने की जिम्मेदारी तो जनता की है ।जिसको वर्तमान को मुट्ठी में कैद करके भविष्य के विकास की चाबी किस एक पार्टी को सौंपनी है ।अब देखना यह दिलचस्प होगा कि फरवरी की हल्की फुल्की ठंड के बीच जनता दिल्ली के सत्ता का ताज किसके सर पर सजाती है?

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