1 दिसंबर 2019 कौशलेंद्र राज शुक्ला
अभी महाराष्ट्र का घाव भरा ही नहीं था की आर्थिक मंदी के कारण भाजपा सरकार को एक और घाव लग गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछली तिमाही में भारत की विकास-दर जितनी गिरी है, उतनी पिछले छह साल में कभी नहीं गिरी। इस बार देश की सकल उत्पाद दर (जीडीपी) घटकर सिर्फ 4.5 प्रतिशत रह गई है।एक नारा आप सभी ने अमेरिका में सुना था कि एवरी थिंग इस फाइन इन इंडिया ना सिर्फ एक भाषा में बल्कि कुल 8भाषाओं में जिसकी अमेरिका से लेकर भारत तक खूब तारीफ हुई थी । जो कि कश्मीर के लिए कहा गया था, लेकिन अगर मौजूदा हालत को देखा जाए तो क्या इंडिया में वकाई में सब ठीक है? सिर्फ कश्मीर के हालत को सामान्य बनाने में लगी सरकार शायद ये भूल रही है कि देश में मंधी किस कदर अपना पांव फ़ैला रही है ।नौकरियां जा रही है लेकिन सरकारी को इस कि कोई चिंता न है । वो केवल अपनी सरकार का वोट बैंक बढ़ाने में लगी है कैसे भी सरकार आनी चाइए राज्य में और केंद्र में ! जिसका उदाहरण हाल में हुए राज्य के चुनाव, देश में मंदी है लेकिन राज्य चुनाव में अपना वोट बैंक कश्मीर के मुद्दे से बढ़ाने कि कोशिश में लगी है ।शायद आज हमरे देश में आर्टिकल 370 और ट्रीपल तलाक बेरोजगारी से ज्यादा जरूरी हो गए है या फिर यूं कह लीजिए कि राज्य में सभी चीजे सही है कोई मुद्दा ही नी है जिसके बूते सात्ता के हुकमाराम चुनाव लड़ सके।।। जब मंदी के ऊपर सवाल पूछा जाता है तो कहा जाता है कि हम सब ठीक कर देगे बेरोजगारों को नौकरी देंगे देश के एकनामी को 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाएंगे जब यह पूछा जाता है कि कब होगा यह सब तो शायद समय बताने का टाइम नहीं होता ऐसे में सवाल उठता है कि देश में इस कदर बेरोजगारी और मंदी की की स्थिति आई कैसे तो चलिए आज आपको विस्तार से बताते हैं कि मंदी की हालत आज देश में क्यों है और इसके लिए सरकार क्या कर रही है।जैसे भारत-चीन युद्ध, भारत-पाक युद्ध, भयंकर अकाल, विदेशी मुद्रा में भुगतान का असंतुलन आदि। लेकिन इस बार ऐसा कोई कारण नहीं है। इसके अलावा केंद्र की सरकार में किसी प्रकार की कमजोरी या अस्थिरता भी दिखाई नहीं पड़ रही है। नरेंद्र मोदी का नेतृत्व उतने ही दमखम से बरकरार है, जैसा कि 1971 के बाद इंदिरा गांधी का था। तो फिर क्या वजह है कि अर्थ-व्यवस्था में निरंतर गिरावट बढ़ती चली जा रही है ? वित्त मंत्री निर्मला सेतुरमन द्वारा बड़े उद्योगों को दी गई रियायतों और बैंक-व्यवस्था में सुधार के बावजूद हमारी अर्थ-व्यवस्था पटरी से उतरती क्यों जा रही है ? विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के अनुमान भी सही क्यों नहीं बैठ पा रहे हैं ? लाखों मजदूर और किसान बेरोजगार हो गए हैं, दुकानदार दिन भर बैठकर मक्खियां मारते रहते हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियां अपना माल आधे दाम पर बेचने को बेताब हो रही हैं, दीवाली पर बाजारों में रौनक भी दिखाई नहीं पड़ी और सरकार भी झींक रही है कि उसकी आमदनी घट रही है। उसके पास बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए पैसा नहीं है। आखिर इसका कारण क्या है ? इस अर्थमंदी का कारण सरकार की मंदबुद्धि तो नहीं है ?
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की किसी एक तिमाही में सबसे सुस्त रफ्तार है. गौरतलब है कि लगातार घटती ग्रोथ रेट को काबू करने के लिए मोदी सरकार सक्रिय हुई है और कदम उठाए गए हैं, लेकिन इनका बहुत ज्यादा असर अभी नहीं हो पाया है. अब जानकार यह भी कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की हालात को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक दिसंबर के पहले हफ्ते में रेपो रेट में एक बार फिर से चौथाई फीसदी की कटौती कर सकता है.
रेटिंग एजेंसियों इंडिया रेटिंग और ICRA ने अनुमान लगाया है कि सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 4.7 फीसदी तक जा सकती है. हालांकि, कोटक इकोनॉमिक रिसर्च ने जीडीपी ग्रोथ 5.2 फीसदी रहने का अनुमान जारी किया है.
इसके पहले वित्त वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 5 फीसदी से कम हुई थी. कमजोर मांग एवं सेंटिमेंट, नियामक अनिश्चितता और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के सेक्टर की सेहत के बारे में बनी चिंताओं की वजह से जीडीपी ग्रोथ में गिरावट आ रही है.
आरबीआई की नई समीक्षा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी का अनुमान घटाकर 6.1 फीसदी रह जाएगा. इससे पहले आरबीआई ने 6.9 फीसदी की दर से जीडीपी ग्रोथ का अनुमान जताया था. नोटबंदी भी एक प्रमुख कारण है लगातार गिरती हुई जीडीपी का अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी तक का लक्ष्य का जुमला जो चुनाव के दौरान या अमेरिका में दिया गया था उस तक कैसे पहुंचा जाएगा जब देश की हालत यह है 2022 तक वादा तो किया गया है लेकिन क्या यह गिरते हुए हालात की स्थिति में सरकार अपने किए हुए वादे को पूरा कर पाएगी या फिर इसको 15 लाख जैसी स्कीम की तरह उठाकर छोड़ देगी और फिर एक बार देश की जनता को मूर्ख बनाएगी?







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