दुनिया को अब यह मान लेना चाहिए कि सीरिया में मिनी वर्ल्ड वार चल रहा है और मिनी वर्ल्डै वार से मानवता झुलस रही है, मानवता शर्मसार हो रही है, मिनी वर्ल्ड वार से मुक्ति कब मिलेगी, इसकी कोई उम्मीद वर्तमान मंें नहीं है। प्रश्न यहां यह उठता है कि सीरिया में जारी युद्ध को मिनी वर्ल्ड वार क्यों कहा जाना चाहिए, क्यों स्वीकार किया जाना चाहिए कि दुनिया के लिए सीरिया एक विस्फोटक जगह बन गयी है जहां पर हिंसा और हिंसा का ही प्रभुत्व है? प्रश्न यह भी है कि सीरिया में मानवता किस प्रकार से झुलस रही है, सीरिया में मानवता किस प्रकार से शर्मसार हो रही है? सीरिया में जारी मिनी वर्ल्ड वार का समाधान क्या है? क्या सभी पक्ष मिल कर सीरिया की राजनीतिक समस्या का हल नहीं कर सकते हैं? क्या मुस्लिम दुनिया के लिए सीरिया की इस हिंसक और मानवता को शर्मसार करने वाली समस्या कोई चिंता का विषय नहीं है? क्या मुस्लिम दुनिया के देश अपने-अपने मतभेद शिथिल कर सीरिया की मुस्लिम आबादी के चेहरे पर खुशी नहीं ला सकते हैं? आखिर मुस्लिम दुनिया दो भागों में विभाजित होकर सीरिया में खून-खराबा और गृहयुद्ध में पेट्रोल डालने का काम क्यों कर रही है।
क्या तानाशाह असद के पक्ष में मुस्लिम दुनिया के एक भाग और रूस-ईरान का खडा रहना नैतिक कदम माना जा सकता है। क्या तानाशाही जनप्रियता को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग है? अगर नहीं तो फिर तानाशाह असद के पक्ष में हिंसा का समर्थन करना और तानाशाह असद की सरकार को बनाये रखने की प्रक्रिया को सीरिया की मुस्लिम आबादी के लिए दुखदायी और कष्टकारी क्यों नही माना जाना चाहिए। सीरिया की मुस्लिम आबादी अपने ही तानाशाह असद द्वारा रसायनिक हमले के शिकार हो रहे हैं। जो तानाशाह रसायनिक हमले करने के लिए नहीं हिचकता उसका पतन क्यों नहीं होना चाहिए? कभी इराक में कूर्द विद्रोहियों को हिंसक रूप से नियंत्रित करने के लिए सदाम हुसैन न भी रसायनिक हमले कर हजारों कूर्द विद्रोहियों को मौत का घाट उतार दिया था। अमेरिका ने सदाम हुसैन को फांसी पर लटकवा दिया था। आज न कल असद का भी हाल सदाम हुसैन की तरह ही होगा। यह मिनी वार कभी भी तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दील हो सकता है।
इस प्रश्न पर अब गौर करते हैं कि सीरिया में जारी वार को मिनी वर्ल्ड वार क्यों नहीं कहा जाना चाहिए। इसके पक्ष में सबसे बडा तर्क यह है कि सीरिया के युद्ध में कोई एक नहीं बल्कि 20 ऐसे देश हैं जो किसी न किी प्रकार से युद्ध में शामिल है। दुनिया की सभी शक्तिशाली देश किसी न किसी प्रकार से सीरिया के मिनी विश्व युद्ध में शामिल है। मुस्लिम दुनिया भी सीरिया के युद्ध में शामिल है। फिर बचा कौन? द्वितीय विश्च युद्ध की समाप्ति के बाद यह पहली हिंसक लडाई है जिसमें इतने देश किसी न किसी प्रकार से शामिल है और उनके किसी न किसी स्वार्थ का दांव लगना भी लक्षित है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया ने शीत युद्ध जरूर देखा था, दुनिया ने युद्ध के लिए तनातनी जरूर देखा था। जहां तक शीतयुद्ध की बात है तो वह सिर्फ हथियारों की होड तक सीमित था और अमेरिका और सोवियत संघ ही पक्षकार थे। उस समय मिथाइल गोर्वाचोव और रोनाल्ड रीगन के बीच हुए ऐतिहासिक संधि के बाद शीतयुद्धपर विराम लगा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद शीतयुद्ध पूरी तरह से समाप्त हो गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जो दुनिया मे शांति की उम्मीद जगी थी , मानवता को शर्मसार करने से बचाने और मानवता को हिंसा की आग झुलसने से बचाने की जो उम्मीद जगी थी वह उम्मीद समाप्त हो चुकी है। दुनिया के कई देशों में गृहयुद्ध तो जरूर चल रहे हैं, दुनिया के कई देशों में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद और हिंसा जरूर जारी है, दुनिया भर में राजनीतिक सत्ता को हडपने और स्थापित करने का ंसंधर्ष जरूर चल रहे हैं पर सीरिया में जारी युद्ध सिर्फ गृहयुद्ध नहीं बल्कि दुनिया के बडे और प्रहारक 20 देश शामिल हैं। गृहयुद्ध में तो सिर्फ देश के भूभाग की आबादी ही शामिल होती है। पर सीरिया की हिंसा को बाहरी तत्व न केवल हवा दे रहे हैं बल्कि लोमहर्षक, संहारक और हिंसक लडाकू विमानों से हमला कर निर्दोष जिंदगिया भी तबाह कर रहे हैं।
मिनी वर्ल्ड वार की भयानकता को देख लीजिये, रूस के शासक ब्लादमीर पुतिन और अमेरिका के शासक डोनार्ल्ड ट्रम्प की सीरिया में हिंसक भूमिका को देख लीजिये, समझ लीजिये फिर आपके संज्ञान में सीरिया की निर्दोष लोगों को वेचारगी और कठिनाइयां समझ मे आ जायेगी। सबसे पहले तो ब्लादमीर पुतिन और डोनाल्ड ट्रम्प की भूमिका और इन दोनों के सीरिया में स्वार्थ को जानना होगा। ब्लादमीर पुतिन और डोनार्ल्ड ट्रम्प कोई शांति के पूजारी नहीं है, ये दोनों कोई सीरिया की जनता के हितैषी नहीं है। इनके अपने-अपने स्वार्थ है, इन्हें दुनिया में अपनी-अपनी दबंगयी जमानी है। इसीलिए ये अपने खूंखार हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं। ब्लादमीर पुतिन उस असद की सरकार को बचाने के लिए विद्रोहियों पर वार कर रहे हैं, मिसाइलें दाग रहे हैं जो असद तानाशाह है और असत की तानाशाही के खिलाफ विद्रोह हुआ था। विद्रोह पहले आम जनता ने नही किया था बल्कि असद की सेना ही दो भागों में विभाजित हो गयी थी। असद की सेना के कई वरिष्ठ कमांडरों ने असद सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया था, लहराया था। 2011 की बात है जब सीरिया ने बगावत देखी थी और असद सेना के कंमाडरों ने मिलकर फ्री सीरियन आर्मी का गठन किया था। फ्री सीरियन आर्मी को असद की सरकार ने हल्के में लिया था। असद की तानाशाही सरकार को यह समझ में ही नहीं आया था कि फ्री सीरियन आमी एक न एक दिन सीरिया की तानाशाही सरकार विरोधी जनता का प्रतिनिधित्व कर लेगी और उनके लिए खतरनाक चुनौतियां खडी कर देगी। फ्री सीरियन आर्मी ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढायी है। इसके बाद अलकायदा ने सीरिया में अपना पैर पसारा। उसके बाद सीरिया में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी सगठन आईएस ने अपना वर्चस्व कायम किया था। हालांकि यह सही है इराक में आईएस की पराजय के बाद आईएस सीरिया में भी काफी कमजोर हुआ है। अमेरिका ने इराक में आईएस को कमजोर करने की सफलता पायी है। यह भी सही है कि अगर ब्लादमीर पुतिन ने सीरिया की असद तानाशाही के साथ खडे नहीं होते और असद तानाशाही सरकार के पक्ष में युद्ध नहीं करते तो यह निश्चित है कि सीरिया में असद की तानाशाही सरकार का पतन हो जाता है। आज असद की तानाशाही इसीलिए जिंदा है कि उसे रूस का सैनिक सपोर्ट सक्रियता के साथ मिल रहा है। रूस लडाकू विमान विद्रोहियो को सीरिया की राजधानी दमकिश के नजदीक फटकने भी नहीं दे रहे हैं। सीरिया में ब्लादमीर पुतिन का हिंडेन एजेडा और स्वार्थ क्या है? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। ईरान भी सीरिया में सक्रिय तौर पर युद्धरत है। उत्तर कोरिया भी असद को मिसाइलें उपलब्ध करा रहा है। चीन तो ऐसे सक्रिय तौर पर सीरिया में उपस्थित नहीं है पर चीन की कूटनीति असद की तानाशाही सरकार के पक्ष में खडी है। चीन नहीं चाहता कि सीरिया में असद की तानाशाही सरकार का पतन हो। चीन भी एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है। इसलिए तानाशाही गठजोंड चीन को रिझाता है।
इधर सीरिया की हिंसा उस समय दुनिया के लिए चिंता के विषय हो गयी जब अमेरिका ने हिंसा के जवाब में सीरिया में मिसाइलें दागी। अमेरिका के नेतृत्व मे फ्रांस, ब्रिटेन ने डेढ सौ मिसाइलें दागी हैं, ये मिसाइलें सीरिया की राजधानी दमकिश सहित अन्य बडे शहरों पर गिरी हैं। टोमाहाक, राफेल और टारनाडो नामक हिंसक विमानो से मिसाइलें दागी गयी। इन हिंसक विमानों और हिंसक मिसाइलों की जद में सीरिया के दमकिश और अन्य शहर आये हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का कहना है कि उन्होने सीरिया के सैनिक ठिकानों को निशाना बनाये हैं। पर स्वतंत्र सूत्रों का कहना है कि मिसाइलें दमकिश अन्य शहरो पर भी गिरी हैं, सैनिक ठिकानो पर भाी गिरी हैं। जब आबादी वाले क्षेत्रो में मिसाइलें गिरेगी तो तो निश्चित तौर पर घातक नरसंहार होगा, बडी संख्या में मानवीय जीवन संकटग्रस्त होगा। कहा जा रहा है कि इन हमलों मे सौ से भी अधिक लोगों की मौते हो चुकी हैं। सीरिया में हिंसा के प्रसार के कारण स्वतंत्र जानकारियां एकत्रित करना मुश्किल है। इसलिए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के हमले में सीरिया का कितना नुकसाान हुआ है, इस पर चाकचौबंद ढंग से कुछ भी कहना मुश्किल है। खास कर डोनाल्ड ट्रम्प ने चंतावनी देते हुए कहा है कि अभी तो झांकी है, असली युद्ध तो शेष है। डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया को असद की तानाशाही और सीरिया के लोगों पर असद की तानाशाही के अत्याचार, दमन और हिंसा के खिलाफ उठ खडे होने के लिए कहा है। अमेरिका की यह कार्रवाई हिंसा के खिलाफ प्रतिहिंसा के तौर पर देखी जा रही है। कुछ दिन पूर्व सीरिया की तानाशाही समर्थक सेना ने सीरिया के शहर डोमा पर रसायनिक हमले की थी। इस रसायनिक हमले में सौ से अधिक लोग मारे गये थे और कई हजार लोग घायल हो गये थे। जब दुनिया के सामने इस रसायनिक हमले की सच्चाई आयी तब दुनिया दंग रह गयी। अमेरिका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आगबबूला हो गया थां। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस रसायनिक हमले के खिलाफ असद को चेताया था और कहा था कि इस गुनाह की सजा उन्हें जरूर मिलेगी। डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस और ईरान को भी दंड भुगतने के लिए अगाह किया था। रूस और ईरान ने रसायनिक हमलों से अपना पल्ला झाड लिया था। जाहिर तौर पर एक तरफ रूस, ईरान, उत्तर कोरिया असद की तानाशाही सेना के साथ खडे हैं तो फिर दूसरे तरफ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सउदी अरब हैं। अरब की मुस्लिम दुनिया पर वर्चस्व की लडाई कभी रूकती नहीं है।
अब यह मिनी वार तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दील हो सकता है। अगर यह मिनी वर्ल्ड वार तीसरे विश्वयुद्ध में तब्दील होता है तो दुनिया के सामने कितनी विकट समस्या उत्पन्न होगी, इसकी कल्पना की जा सकताी है।
समाधान क्या है, शांति की कितनी उम्मीद है? समाधान और शांति की उम्मीद वर्तमान में नहीं है। शांति वहां तभी आ सकती है जब असद की तानाशाही की विदाई संभव हो सकती है। सीरिया में अगर असद की विदाई संभव हो सके तो सीरिया में शांति आ सकती है। सीरिया में स्थायी शांति के लिए राष्ट्रीय सरकार की जरूरत है।
विष्णु गुप्त
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