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हुर्रियत को भारतीय कानून का पाठ पढ़ाना ही होगा
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हुर्रियत को भारतीय कानून का पाठ पढ़ाना ही होगा

May 24th, 2017 urvashi Goel Articles, Hindi 0 comments

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-विष्णुगुप्त

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

भारत की सेना ने इधर पाकिस्तान की कई चौकियों को तबाह कर दिया है और पाकिस्तान के कई सैनिक मारे गये हैं, पाकिस्तान परस्त हुर्रियत नेताओं से भी पूछताछ हो चुकी है। हुर्रियत के सरगना सैयद अली शाह गिलानी सहित चार अन्य हुर्रियत नेताओं के खिलाफ मुकदमें दर्ज किये गये हैं। पाकिस्तान को कडे सबक देने के साथ ही साथ हुर्रियत की आतंकवादी और पाकिस्तान परस्त मानसिकता का जमींदोज होना भी जरूरी है।

सुरक्षा एजेसियों की जांच में यह साबित हो गया कि हुर्रियत को पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं। पैसे कोई आज से नहीं मिल रहे हैं बल्कि जब से कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जारी है तब से हुर्रियत के सरगनाओं को पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं। हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सरेआम स्वीकार किया है। सिर्फ इतनी सी बात नहीं है। बात बहुत गंभीर है और बात राष्ट्रीय सुरक्षा व एकता और अखंडता को चुनौती देने वाली है। उल्लेखनीय है कि हुर्रियत नेता गिलानी यह कहते रहे हैं कि उनका आंदोलन अलग कश्मीर राज्य बना कर पाकिस्तान में मिलना है, कश्मीर का हित पाकिस्तान में ही मिलने से सुरक्षित रहेगा। क्या यह सही नहीं है कि हुर्रियत का हर नेता कभी न कभी आतंकवादी सरगना रहे हैं। क्या यह सही नहीं है कि हुर्रियत के नेताओं ने अपने-अपने आतंकवादी समय में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से खदेड़ने के दोषी रहे हैं?  हुर्रियत के नेताओं और पाकिस्तानी आतंकवादियों की साजिश और मिलीभगत कभी रूकती नहीं है। हुर्रियत आतंकवादियों ने ही पत्थरबाज खडे कर रखे हैं। पाकिस्तान से आयी रकम से हुर्रियत पत्थरबाज बनाती हैं और पत्थरबाजों को भारतीय सेना के खिलाफ हमले के लिए प्रेरित करती हैं। यह सब एक हिन्दी चैनल के स्टिंग आपरेशन में भी जगजाहिर हो चुका है।

हुर्रियत आतंकवादियों ने जब देखा कि हिंसा और बम फोड़ने से कुछ नहीं होगा तो फिर उन्होंने तरह-तरह के संगठनों को मिला कर हुर्रियत नामक संगठन बना लिया। हुर्रियत के नेता प्रत्यक्ष तौर पर हिंसा छोड दी पर उनकी हिंसक मानसिकता गयी नहीं। उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान के प्रायोजित आतंकवाद के साथ चलने की मानसिकता बना ली। पाकिस्तान और पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई चाहती थी वैसा ही हुर्रियत के नेता करने लगे। हुर्रियत ने देश की उदार पत्रकारिता में भी अपनी पहचान बनायी। विदेशी और अरब देशों की मीडिया पहले से ही हुर्रियत जैसी आतंकवादी मानसिकताओं के साथ खडा था। हुर्रियत के नेताओं ने ऐसी स्थिति स्थापित कर दी कि केवल वे ही जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि हैं और जम्मू-कश्मीर पर कोई भी बात सिर्फ उनसे ही हो सकती है। जबकि हुर्रियत के आतंकवादी पूरे जम्मू-कश्मीर की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। लद्दाख की जनता हुर्रियत को अपना संगठन या अपना प्रतिनिधि नहीं मानती हैं। ठीक इसी प्रकार  जम्मू की जनता भी हुर्रियत के नेताओं को अपना प्रतिनिधि नहीं मानती है।

यूपीए की सरकार ने हुर्रियत के नेताओं को ही जम्मू-कश्मीर का असली प्रतिनिधि मान लिया था। सबसे बडी बात यह है कि पाकिस्तान के हाईकमीशन पर कोई नियंत्रण नहीं था। दिल्ली में बैठा पाकिस्तान के हाईकमिशन शह देता रहा है,  जब जैसा चाहा वैसा हुर्रियत नेताओं से बोलवाता रहा। पाकिस्तान का हाईकमिशन कहता था कि हुर्रियत के नेताओं के बिना कश्मीर में कोई भी बात अधूरी रहेगी, कोई भी शांति प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकती है।

पाकिस्तान और हुर्रियत की यह मिलीभगत कभी समाप्त नहीं हुई। यूपीए शासन काल में भी यह बात उठी थी कि हुर्रियत के नेताओं को पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं। पाकिस्तान से पैसा हवाला से आता है। फिर भी पाकिस्तान से आने वाले पैसे पर न तो रोक लगी और न ही हुर्रियत नेताओं को भारतीय कानून का पाठ पढाया गया।

मोदी की सरकार भी हुर्रियत के नेताओं के खिलाफ कोई पराक्रम नहीं दिखा सकी। मोदी सरकार की नीति सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान को बेनकाब करने की रही है। मोदी सरकार ने अतंराष्टीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की अपनी नीति में सफलता जरूर पायी है। पर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अपनी आतंकवादी नीति में बदल डाली। पाकिस्तान ने हुर्रियत को उकसा कर और हुर्रियत को पैसे बढा कर विरोध कराने की नीति बनायी। यह प्रचारित कर देना कि भारत के खिलाफ लोग आंदोलित है,  भारत के खिलाफ कश्मीर में जनविद्रोह चरम पर है। ऐसा करने में हुर्रियत के नेता और पाकिस्तान सफल भी हुआ है।

यह भी सही है कि हुर्रियत के नेता गरीब बच्चों को मोहरा बनाते हैं और गरीब बच्चे लालच में आकर हिंसक गतिविधियां चलाने के लिए तैयार हो जाते हैं। पत्थरबाज भी गरीब बच्चे हैं। जबकि हुर्रियत नेताओं के बच्चे अंग्रेजी स्कूलों और विदेश में पढ़ाते हैं। पर मीडिया यह बात उठाती ही नहीं। नेशनल मीडिया में यह बात कभी कभार आती तो है पर घाटी स्थित मीडिया में यह बात आती ही नहीं। सुरक्षा में चली सेना और पुलिस की गोलियों का शिकार कोई हुर्रियत के नेता नहीं और न ही हुर्रियत के बच्चे होते हैं बल्कि सुरक्षा में चली पुलिस और सेना की गोलियों का शिकार गरीब बच्चे ही होते हैं जो लालच में पत्थरबाज बने होते हैं। गंभीर बात यह है कि हुर्रियत के नेताओं ने अपनी आतंकवादी मानसिकता के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक चैनल भी अवैध तौर पर चला रखे हैं। अभी हाल ही में भारत सरकार ने आतंकवादी मानसिकताएं प्रसारित करने के आरोप में 34 विदेशी चैनलों को कश्मीर में प्रतिबंधित किया है।

 

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