15 दिसंबर, 2019 नीतीश पाठक
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने यूपी के उन्नाव से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और शशि सिंह को धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 363 (अपहरण), 366 (शादी के लिए मजबूर करने के लिए एक महिला का अपहरण या उत्पीड़न), 376 (बलात्कार और अन्य संबंधित धाराओं) और POCSO के तहत दोषी ठहराया है. आइये आपको बताते हैं कि इन सभी मामलों में दोषी पाए जाने पर विधायक सेंगर का क्या हश्र होगा.
IPC की धारा 120 B (आपराधिक साजिश रचना)
किसी अपराध की साजिश रचना. अपराध को सुगम बनाने के आशय से या संभवतः उसके बारे में जानते हुए भी ऐसे अपराध की परिकल्पना करना या अवैध रूप से स्वेच्छा पूर्वक ऐसे अपराध को छिपाना या अपराध करने के तरीके का वर्णन करना आदि भारतीय दंड संहिता की धारा 120 के तहत ही आता है.
दोषी को सजा
यदि ऐसा अपराध घटित हो होता है तो दोषी को किसी एक अवधि के लिए कारावास सजा सुनाई जा सकती है. सजा की अवधि एक चौथाई तक बढ़ाई जा सकती है. साथ ही दोषी को आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है. लेकिन यदि अपराध नहीं होता है, तब भी दोषी को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है. या उस पर आर्थिक दण्ड या दोनों लगाए जा सकते हैं. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है.
दोषी
अपराध सिद्ध हो जाने पर दोषी को न्यूनतम 7 साल और अधिकतम 10 साल की कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है. कई दुर्लभ मामलों में दोषी को उम्रकैद की सजा भी जा सकती है. इसके अलावा आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि किसी व्यक्ति ने अपनी पत्नी के साथ बलात्कार किया है, और उसकी आयु बारह वर्ष से कम नहीं है, तो आरोप सिद्ध होने पर दोषी को दो वर्ष तक की सजा हो सकती है. या उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. कई मामलों में अदालत पर्याप्त और विशेष कारणों से सजा की अवधि को कम कर सकती हैं. बलात्कार के समय अलग-अलग हालात और श्रेणी के हिसाब से इसे धारा 375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ के रूप में विभाजित किया गया है.
पॉस्को एक्ट (नाबालिग या बच्चों का यौन शोषण)
पॉक्सो शब्द अंग्रेजी से आता है. इसका पूर्णकालिक मतलब होता है प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है. वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है.
दोषी को सजा
इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो. इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है. पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो. इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इसी प्रकार पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.
आईपीसी की धारा 376 (महिला से बलात्कार)
किसी भी महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 के तहत मुकदमा चलाया जाता है. कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे बलात्कार कहते हैं. किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं लेकिन कानूनन वह बलात्कार ही कहलायेगा.
आईपीसी की धारा 363 (अपहरण)
यदि कोई व्यक्ति भारत में रहने वाले या किसी क़ानूनी अभिभावक की संरक्षता में रहने वाले किसी शख्स का अपहरण करता है, तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के तहत अपराध है. ऐसे में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है. जिसे जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है. यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है. इस धारा के तहत पंजीकृत मामलों की सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट करते हैं. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है.
आईपीसी की धारा 366 (यौन शोषण के लिए मजबूर करना, बहकाना)
अगर कोई शख्स किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसे विवाह करने के लिए विवश करता है, या अवैध रूप से संभोग करने के लिए उस स्त्री को बहकाता या मजबूर करता है. तो यह अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत आता है. दोषी पाए जाने पर उस शख्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है.
दोषी को सजा
ऐसे मामले में दोषी तो अधिकतम 10 वर्ष के लिए कारावास की सजा हो सकती है. साथ ही दोषी पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है. यह एक गैर-जमानती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है. जिसकी सुनवाई सत्र न्यायालय में की जाती है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है.
ये था पूरा मामला
जून 2017 में बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने पीड़िता का अपहरण करके उसके साथ बलात्कार किया था. वारदात के वक्त पीड़िता नाबालिग थी. यूपी के बांगरमऊ इलाके से चार बार के विधायक सेंगर को अगस्त 2019 में बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया था. इस मामले के तूल पकड़ने पर कुल 5 एफआईआर दर्ज की गई थीं. सभी मामले कोर्ट में चल रहे थे. जिसमें से एक पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. बाकी में अभी भी सुनवाई इसी कोर्ट में चल रही है. जिसमें पीड़िता के पिता की कस्टडी में हुई मौत, सड़क दुर्घटना में उसके परिवार से मारे गई दो महिला और पीड़िता के साथ किये गए गैंगरेप और उसके चाचा के ख़िलाफ़ कथित रूप से झूठा मामले दर्ज करने से जुड़े मामले शामिल है.
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