सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक़ के मसले पर आज भी सुनवाई जारी रही। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय केंद्र ने कहा की मुस्लिम महिलाओ की समान अधिकार नहीं और अगर जरूरत पड़ती है तो हम तीन तलाक़ पर कानून भी ला सकते है। सुनवाई के समय मुकुल रोहतगी ने कहा की हम इस मसले को लेकर एक कानून बनाएंगे साथ ही उन्होंने ये भी कहा की हर तरीके के तलाक़ बुरे है।
केंद्र ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह कहा की भारत में मुस्लिम महिलाओ समान अधिकार नहीं मिल पाए है जबकि दूसरे देशों में भारत के मुकाबले मुस्लिम महिलाओ को काफी अधिकार है।
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मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में बहुविवाह और निकाह हलाला की भी समीक्षा की मांग की थी। इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा की अभी इन तीन मसले पर सुनवाई करने के लिए अभी समय नहीं है, अभी सिर्फतीन तलाक़ के मामले पर सुनवाई होगी। ससे पहले पिछले सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि बहुविवाह की समीक्षा नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट के तीन सवाल
1. तलाक-ए बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं?
2. क्या इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं?
3. क्या कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर कोई आदेश लागू करा सकता है या नहीं?
केंद्र ने रखे ये सवाल –
1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तीन तलाक, हलाला और बहु-विवाह की इजाजत संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं ?
2. समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
3. पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
4. क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में पांच जज बैठे है और वह पांच जज अलग अलग धरम से है। इन जजों में मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कूरियन जोसेफ (ईसाई), आरएफ नारिमन (पारसी), यूयू ललित (हिंदू) और अब्दुल नजीर (मुस्लिम) हैं।
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