समय बदला है। इसी के साथ महिलाओं के प्रति हमारी सोच और मानसिकता भी बदली है। यह अच्छी बात है कि महिलाओं के सम्मान और उनके हक की बात की जाती है। उन्हें बराबरी पर लाने की बात की जाती है। कई मामलों में तो आधी आबादी पुरुषों से भी आगे दिखाई देती हैं। यह सुनकर अच्छा लगता है और गर्व महसूस होता है कि फोर्ब्स की शक्तिशाली महिलाओं की सूची में आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ एवं एमडी चंदा कोचर और अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा सहित पांच भारतीय जगह बनाने में कामयाब रही हैं।

अगर महिलाओं की कामयाबी की बात की जाये तो एक लंबी फेहरिस्त बन जाती है चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर राजनीति या विज्ञान का क्षेत्र। भारतीय महिलाओं ने कामयाबी के परचम सदा लहराया है। सरोजनी नायडू और इंदिरा गांधी से लेकर सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण, सुमित्रा महाजन तक राजनीति में अहम मुकाम हासिल करने वाली भारतीय महिलाओं की सूची काफी लंबी है। बात अंतरितक्ष की हो तो भारतीय मूल की अमेरिकी सुनीता बिलियम्स को नाम नहीं भुलाया जा सकता। खेल के मैदान पर पीटी ऊषा से लेकर मेरी कॉम, साइना नेहवाल का नाम उनकी कामयाबियों से भरा है।
इन कामयाबियों की सूची की रोशनी तब मंद पड़ जाती है जब हम आये दिन महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें सुनते और पढ़ते हैं। तब लगने लगता है कि इस कामयाबियों के असल मायने आखिर क्या हैं। देश प्रगति पर है। इस प्रगति में महिलाओं की बराबर की भागीदारी सदा औऱ सर्वदा याद की जाती रहेगी। इन्हें भुलाया नहीं जा सकता। ये उपलब्धियां न भुलाये जाने वाली होती हैं। लेकिन जब दिल्ली या किसी शहर में निर्भया जैसा हादसा होता है तो महिलाओं को बराबरी देने और प्रगतिशील समाज की हमारी हकीकत हमें ही मुंह चिढ़ाने लगती है। क्रिकेटर मोहम्मद शमी पर उनकी पत्नी के लगाये गये आरोपों पर कितनी सच्चाई है, यह अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन ये सवाल हमें झकझोरते जरूर हैं कि विकसित समाज की हालत जब ऐसी है तो प्रगतिशीलता सवाल जरुर उठते हैं। प्रिया प्रकाश के वीडियो का वायरल होना हमारी प्रगतिशीलता को दर्शा सकता है लेकिन जब कोई पंचायत लड़कियों के पहनावा तय करने लगे और उनके मोबाइल रखने पर पाबंदी लगाने लगे तो समझा जा सकता है कि हम कहां जा रहे हैं। सवाल यह भी कि जब दंगल की अदाकारा जायरा वसीम अपनी हवाई यात्रा के दौरान अपनी सह यात्री द्वारा छेड़छाड़ की शिकार होने लगे तो समझा जा सकता है कि हमारी सोच और मानसिकता कहां और कैसे जा रही है।
बाल विवाह, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराइयों पर हम सबने एक तरह से नियंत्रण पा लिया है। बेटी बढ़ाओ और बेटी बचाओ का असर दिखाई देने लगा है। बुलंदियों पर महिलाएं पहुंच रही हैं लेकिन आये दिन महिलाओं पर होने वाले अत्याचार, छेड़छाड़ की घटनाएं हमें शर्मसार तो करती ही हैं। केवल महिला दिवस पर महिलाओं की कामयाबियों को याद कर लेना और यह कह देने भर से कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है, कह देने भर से बात नहीं बनती। किसी एक खास दिवस पर उनको याद कर लेने से महिलाओं का न तो सम्मान बढ़ने वाला है और न ही उनकी स्थिति। जरूरत इस बात की है कि पुरूष अपनी सोच और मानसिकता दोनों ही बदलें और उन्हें बराबरी का हक देने में हर समय, हर स्थिति में तैयार रहें। अगर इस सोच को बना पाने में हम कामयाब हो सकें तो इससे बड़ी महिला दिवस पर हमारी कामयाबी शायद नहीं हो सकती।







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