केंद्र सरकार ने लगाया खांसी-जुखाम के सिरप पर बैन, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एडवाइजरी के बाद सोमवार को छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल कार्रवाई करते हुए राज्य में 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार की खांसी की सिरप या सर्दी-जुकाम की दवाएं देने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम शिशुओं को संभावित दुष्प्रभावों से बचाने के लिए उठाया गया है।

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में कफ सिरप पीने से कई बच्चों की किडनी फेल होने से मौत हो गई थी । अब तक 11 बच्चों की जान जा चुकी है। जांच में सिरप में जहरीला केमिकल पाया गया जिसके बाद राज्य सरकार ने इसकी बिक्री पर रोक लगा दी है।
इसी तरह मध्य प्रदेश के बैतूल और राजस्थान में भी मौत की घटनाएं सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी की है। हर अलग अलग प्रदेशों से इस दवाई की शिकायत आ रही हैं और खासकर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में,
क्या पहले भी बच्चों की मौत का दुश्मन बना कप सिरप

आज से 3 साल पहले अफ्रीकी देश गाम्बिया में कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत हो गई थी। दूसरी घटना इंडोनेशिया की है, जहां कफ सिरप पीने से 200 बच्चों की मौत ने हड़कंप मचा दिया था। वहीं तीसरी घटना उज्बेकिस्तान की है, जहां जहरीला कफ सिरप पीने से 18 बच्चों ने दम तोड़ दिया था।

WHO की जांच में सामने आया कि इन सभी कफ सिरप में DEG और EG जैसे जहरीले पदार्थ मिले हुए थे। सबसे बड़ी बात ये है कि ज्यादातर सिरप बनाने वाली कंपनियां भारतीय थीं। अगर भारत में सरकारें और संबंधित विभाग बच्चों की इन मौतों से खबरदार हो जाते तो मध्य प्रदेश से राजस्थान तक छोटे बच्चों की मौत नहीं होती।
बनता कैसे है कफ सिरप

आपको पता नहीं होगा कि कफ सिरप में ऐसा क्या होता है जो बच्चों की मौत का कारण बन जाता है। इसका जवाब है खांसी के सिरप बनाने में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ हैं. आमतौर पर इनमें क्लोरफेनिरामाइन और फेनिलफ्राइन दवाइयों का इस्तेमाल होता है। जो 4 साल से कम उम्र के बच्चों को आमतौर पर यह दवाई दी जाती है,
लेकिन अब सरकार ने इस पर बैन लगा दिया है. 4 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड नाम की दवाई वाले सिरप भी दिए जाते हैं और ये दवाइयां ज्यादातर पाउडर फॉर्म में होती हैं जो कि इसको घोलने के लिए एक सॉल्वेंट की जरूरत पड़ती हैं

बच्चे कड़वी दवाई पी नहीं पाते हैं तो इसलिए मीठा सोर्बिटॉल या गाढ़ा करने वाले ग्लिसरीन या ग्लिसेरॉल या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल मिलाया जाता है। इससे दवाई गाढ़ी हो जाती हैं, तो मुंह में नहीं चिपकती हैं जब सॉल्वेंट की जगह EG यानी एथिलीन ग्लाइकॉल या फिर DEG यानी डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया जाता है
तो ये बच्चों के लिए जहर बन जाता है. EG और DEG रंगहीन और गंधहीन एल्कोहल हैं, जिनका इस्तेमाल इंडस्ट्री केमिकल की तरह पेंट, हाइड्रोलिक ब्रेक फ्लूड, स्याही, बॉल पॉइंट पेन में होता है।
Shivam Singh
BJMC 3







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