तारीखों का ऐलान भले ही चुनाव आयोग ने अभी नहीं किया है, लेकिन सियासी दलों ने अपनी-अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 16 लाख निर्माण मजदूरों के लिए 802 करोड़ रुपये की नकद सहायता देने का ऐलान किया है। जी हाँ, चुनाव से ठीक पहले ये घोषणा एक बड़ा पॉलिटिकल मास्टरस्ट्रोक मानी जा रही है।

नितीश कुमार ने कहा कि बिहार का विकास तभी संभव है जब मजदूर वर्ग सुरक्षित और सशक्त होगा। इस फैसले से हर रजिस्टर्ड मजदूर को सीधे आर्थिक मदद मिलेगी। लेकिन राजनीति में हर कदम का एक सियासी मतलब भी निकलता है।

विपक्ष का कहना है कि नितीश कुमार की ये योजना चुनावी फायदा लेने की कोशिश है। RJD और कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि ये मदद पहले क्यों नहीं दी गई? चुनाव के ठीक पहले ही मजदूरों को क्यों याद किया गया?
वहीं NDA इस घोषणा को विकास और कल्याणकारी राजनीति का हिस्सा बता रहा है।

सिर्फ इतना ही नहीं—NDA ने चुनाव प्रचार के लिए नया नारा भी पेश कर दिया है:
रफ्तार पकड़ चुका बिहार फिर एक बार NDA सरकार
यानि NDA अपने पूरे कैंपेन को विकास और स्थिरता के इर्द-गिर्द गढ़ना चाहता है।
अब सवाल यह है कि—क्या यह ऐलान NDA को मजदूर वर्ग और गरीब तबके का भरोसा दिला पाएगा?
या फिर विपक्ष इसे चुनावी घूस बताकर जनता के बीच अपनी पकड़ मज़बूत करेगा?

बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों और गठबंधन की जोड़-तोड़ से प्रभावित रही है। लेकिन इस बार कल्याणकारी योजनाएँ, रोजगार और महँगाई भी बड़े मुद्दे बनते दिख रहे हैं।
विपक्षी दल भी अपनी रणनीति तेज़ कर रहे हैं। कांग्रेस “हर घर अधिकार रैली” लेकर मैदान में उतर चुकी है,

वहीं RJD तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बेरोज़गारी और सामाजिक न्याय को मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। तो साफ है कि बिहार में चुनावी दंगल अब और गर्म होता जा रहा है।
एक ओर नितीश कुमार और NDA है जो विकास और योजनाओं के दम पर जनता को लुभाना चाहते हैं, और दूसरी ओर विपक्ष है जो इस सबको चुनावी जुमला करार दे रहा है।
फैसला तो नवंबर में जनता के वोट से होगा, लेकिन अभी से बिहार की सियासी ज़मीन पर गर्मी साफ नज़र आने लगी है।
Deepti Jha
BJMC 2nd year







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