यदि जल दूषित है तो जल प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
वायु प्रदूषित है तो सांस लेना ही दुर्भर हो जायेगा भाव कि जीवन ही खतरे में है | शुद्ध वायु प्राणो के लिए , श्वास प्रक्रिया के लिए बहुत ही आवश्यक है। इसी तरह मिट्टी हमारी मूल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जरूरी है | खाने – पीने के लिए अनाज , शुद्ध हवाओं के लिए पेड़ पौधे भी हमें इसी से मिलते हैं| इसके बगैर हम प्राणी जगत और मानव जाती के विकास के बारे में सोच भी नहीं सकते | और यदि वातावरण में शोर अधिक मात्रा में है तो यह ध्वनि प्रदूषण है जो कि मानसिक असंतुलन का कारण बनता है |
आज के समय की मुख्य चिंता बढ़ता हुआ प्रदूषण
कचरा मैदान के आसपास दुर्गंध युक्त गंध के कारण सांस लेना दुर्भर होता है | और इसके आस पास का स्थान रहने लायक नहीं रहता | विभिन्न श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं | अपशिष्ट उत्पादों से छुटकारा पाने के लिए जब इन्हे जलाया जाता है तो वायु प्रदूषित होती है | अपशिष्ट पदार्थों के सीधे संपर्क में आने से त्वचा सम्बन्धी रोग, विषाक्त पदार्थ विषैले जीव उत्पन्न करते हैं जो की जानलेवा रोगों के कारण बनते हैं | जैसे कि मच्छर, मख्खियाँ इत्यादि | कृषि खराब होती है और खाने पीने की वस्तुएँ खाने के लायक नहीं रहती | पीने का जल जो कि अमृत माना जाता था वह भी रोगो का साधन बन जाता है | ध्वनि जो की संगीत पैदा करती थी शोर बन कर मानसिक असंतुलन पैदा करती है |धरती पर ग्रीन कवच भी बहुत कम लगभग तीन प्रतिशत ही बच है जो कि चिन्तनीय है |
दैनिक जीवन में करें कुछ छोटे बदलाव
1.बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग करें। क्योंकि बायोडिग्रेडेबल कचरे का निपटान करना आसान है।
2.भोजन कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाए, जैविक सब्जियां और फल उगाए जाए |
3.पॉली बैग और प्लास्टिक के बर्तनों और वस्तुओं के उपयोग से बचें। क्योंकि किसी भी रूप में प्लास्टिक का निपटान करना मुश्किल है।
4. कागज़ या कपड़े की थैलियों का उपयोग करें ।
5. अलग-अलग डस्टबिन में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग निपटाने से कचरा अलग हो जाता है। भारत सरकार ने पहले ही इस अभियान को शुरू कर दिया है और देश भर के विभिन्न शहरों में विभिन्न क्षेत्रों में कई हरे और नीले डस्टबिन लगाए गए हैं। 6. कागज़ उपयोग को सीमित करें। कागज़ बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष कई पेड़ काटे जाते हैं। यह प्रदूषण का एक कारण है। डिजिटल प्रयोग अच्छा विकल्प है।
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