2 – 3 जुलाई की दरमियानी रात जब से उत्तर प्रदेश के विकरू गांव की घटना प्रकाश में आई है तब से मुख्य कुख्यात अपराधी विकास दुबे का हर एक महकमे के साथ संबंध सामने आ रहा है, सिर्फ और सिर्फ दावे के साथ ही नहीं बल्कि सच्चाई का दावा और झूठ की बे बुनियादी मियाद को ध्वस्त करती तस्वीरों के साथ, पार्टी कोई भी हो विकास दुबे के हुकुम की तालीम बजाने वाले रसूखदार हर एक पार्टी में वर्चस्व के साथ मौजूद थे अगर सीधे शब्दों में कहें दूध का धुला कोई नहीं था । मौजूदा वक्त में सियासत दार एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप और आपने आप को पाक साफ दिखाने की होड़ में इन्हीं तस्वीरों का प्रयोग कर रहे है लेकिन दामन में दाग हर किसी के लगे हुए हैं। कहते है कि सियासत कयासों से चलती दावा फरास्थी इसका एक मुख्य किरदार होता और अगर इसी दावा फरस्थी और कयासों की होड़ में तकनीक के माध्यम से कोई सबूत हाथ लाग जाए तो फिर सोने पर सुहागा को अमली जामा पहनाने जैसा ही होगा और हो ये भी हो सकता है कि आईटी सेल की इस मेहरबानी से वास्तविकता कोसों दूर पीछे हो जाए । इन सब से इतर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी है जो खौफ के इस ध्वजवाहक को जाति के तराजू में तौल कर अपने वर्चस्व की मिसाल कायम करने में लगे है, पर अगर हत्यारे के अपराधिक आंकड़े उठाकर देखे तो शायद उनका ये भ्रम उनके दिमाग से वक़्त के साथ बीत जाएंगे । अब एक नजर न्यायपालिका पर डाल लेते हैं जिसके उदार सीनता के चर्चा अक्सर सुनने को मिल जाते है, रेपिस्ट मुख्य अपराधी है फिर भी एक मां को न्याय के लिए 7 साल कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े जेल में घुस कर दर्जा प्राप्त मंत्री की हत्या कर दी फिर भी अपराधी अष्लाओ का जखीरा रख सानोसौकत से जी रहा था। सवाल खड़ा होता है कि ऐसे अपराधियों को बाहुबल दिलाने में क्या न्याय पालिका भी जिम्मेदार है।

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