दिव्यांश यादव ,28/05/20.
‘विष्णु’ नहीं बल्कि ये हमारी आत्मा की आत्महत्या है
आत्महत्या कभी भी ख़ुद के द्वारा चुनी हुई मौत नहीं है बल्कि ये एक हत्या है. जिसमें हत्यारा मरने वाले के मन में उतर कर उसे मर जाने के लिए विवश कर देता है. विवशता से बड़ा दुःख शायद कोई नहीं, असहाय होने की पीड़ा से बड़ी पीड़ा कोई नहीं. इन पीड़ाओं ने आदम के मन में घर किया और उसी घर को दीमक की तरह चाट गयी. आदम दुनिया से चला गया.
हम कितनी आसानी से किसी आत्महत्या को कायरता में तब्दील कर देते हैं, बिना ये जाने कि कोई कैसे मौत चुन सकता है. ज़रूरी नहीं कि प्रत्येक इंसान की सहने की क्षमता एक सामान हो. सहन से परे जाने वाली पीड़ा अंत चाहती है और ये अंत उसे आत्महत्या की ओर बढ़ा देता है. हाल ही में राजस्थान के एक पुलिसवाले ने आत्महत्या को चुन लिया. शेर की उपाधि पाने वाला एक पुलिसवाला अपनी ज़िंदगी को यूँ ख़त्म करेगा ये कौन सोच सकता होगा भला, लेकिन ऐसा हो गया.
राजगढ़ थानाप्रभारी विष्णुदत्त विश्नोई ने बीते शनिवार अलसुबह अपने सरकारी क्वार्टर में गले में रस्सी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. विष्णु जब सुबह काफी देर तक क्वार्टर से बाहर नहीं आये तो वहां मौजूद स्टॉफ ने दरवाजा खोला तो पाया कि विष्णु की देह फंदे से झूल रही है. ऐसा दृश्य मन की देह से खून निचोड़ लेता है. मैं ने भी देखा था जब मेरा सबसे अच्छा दोस्त ऐसे ही एक झूले के हवाले अपनी देह छोड़ गया था.
थाना प्रभारी विष्णुदत्त ने मरने से पहले पत्र लिखे थे, जिसमें उन्होंने अपने माँ-पिता के लिए और एक अपने अधिकारी के नाम सन्देश दिया. ये ख़त स्याही से लिखे नहीं दिखते, ये ख़ून से सने हैं. वहीं इसी बीच विष्णु की एक चैट भी सामने आ गयी जिसमें उन्होंने बताया कि वो अब मानसिक पीड़ा को सहन नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी पीड़ा जो सरकार दे रही है. उस बातचीत में विष्णु कहते हैं कि राजगढ़ में उन्हें गंदी राजनीति के भंवर में फंसाने की कोशिश हो रही है. वो इस्तीफ़ा दे देंगे. बेहतर होता कि उनमें इतनी सहन शक्ति तो बची रहती कि इस्तीफ़ा लिख देते ना कि ‘आख़िरी ख़त’.
क़रीब 13 थानों की कायापलट कर चुके हनुमानगढ़ के रहने वाले विष्णु अपनी ही ज़िंदगी में चल रही स्थिति की काया नहीं पलट सके. ऐसा नहीं है कि पलट नहीं सकते होंगे, बल्कि सच तो यही होगा कि हर बार उनके हाथ किसी ने पीछे से पकड़ लिए होंगे. सरकार और ये सारा सिस्टम ख़ून से सने हाथ लिए घूम रहा है. ना जाने ऐसे कितने ही विष्णु अपनी ज़िन्दगी में ‘सहन के अंत’ की ओर बढ़ रहे होंगे.
एक दिलेर अफ़सर दुनिया से चला जाता है, स्थानीय सवाल जवाब हो जाते हैं, नारेबाज़ी भी हो जाती है… लेकिन टीवी पर चल रहे किसी भी न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम पर ऐसे मुद्दों को जगह नहीं मिलती. शायद ये पाकिस्तान का मुद्दा नहीं है या फिर किसी धर्म का. विष्णु की अंतिम बातचीत के अनुसार सरकार को इस मौत का ज़िम्मेदार माना जा रहा है. बहरहाल, सबको अपनी जान प्यारी है, लेकिन फिर भी हम हर पांच साल में नया हत्यारा चुन लेते हैं जो हर मिनट एक नयी हत्या के बारे में सोचता रहता है. फिर चाहे वो हत्या क़ानून की हो, समाज की हो या फिर सच की हो.
बेहतर यही है कि ऐसे मामलों के बारे में बात हो, सरकार से और उच्च पदों पर आसीन लोगों से सवाल हों… वरना हर दिन एक नया विष्णु अपनी देह को एक रस्सी के हवाले छोड़ता चला जाएगा. हम अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो समझ लीजिये कि ये विष्णु नहीं हमारी आत्मा की आत्महत्या है.
विष्णुदत्त को श्रद्धांजलि के साथ यही कहूँगा कि आप कायर नहीं थे, हो ही नहीं सकते थे. ईश्वर के पास पहुंच कर यहाँ के लोगों की शिकायत कर दीजियेगा. आपकी दिलेरी हमेशा याद की जाएगी हम सबके ‘सिंघम’.