Krashnan Shukla 27May 2020
जिस देश में कामगार तीन-तीन हजार किलोमीटर पैदल चल रहे हैं, उस देश के पीएम ने लोगों को आत्मनिर्भरता और आत्मसंकल्प पर भाषण दिया. अगर यह देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में था, तो इसके साथ करोड़ों लोगों की जान बचानी पहले जरूरी है.
.लाखों लाख की संख्या में सड़कों पर चल रहे मजदूरों के बारे में एक भी शब्द न बोलकर प्रधानमंत्री ने संकेत दे दिया है कि कामगार और गरीब वर्ग सरकार से कोई उम्मीद न करे. वह आत्मनिर्भर बने और दिल्ली या मुंबई से यूपी बिहार की यात्रा अपने पैरों पर करे.
कई अच्छी बातें भी कहीं, लेकिन जिसकी जान पर बनी हुई है, उसे आर्थिक पैकेज का क्या काम? आर्थिक पैकेज सेे उद्योगों को जरूर राहत मिलेगी. पहले तो जान बचानी चाहिए. यह भाषण निहायत चुनावी भाषण था जिसमें संकट में फंसे, भुखमरी और जान के संकट से जूझ रहे लोगों के लिए कुछ नहीं था.
जिसका एक बेटा कल पैदल चलते हुए हाईवे पर कुचल कर मरा है, दूसरा रास्ते में फंसा है, उस मां से जाकर कहिए कि अम्मा ‘वोकल होकर लोकल को ग्लोबल बनाना है.’ गारंटी है कि अम्मा वोकल हो जाएगी और मुंगरी, पहरुआ, झाड़ू, चप्पल… जो भी हाथ आएगा, उठाकर कपार पर दे मारेगी.
लेकिन क्या कहा जाए! 48 दिन का अनुभव यही है कि इस संकट की सबसे बड़ी कीमत वे लोग चुका रहे है जो सबसे कमजोर लोग हैं. संतोष की बात ये है कि वे दो तीन हजार किलोमीटर के सफर पर निकल चुके हैं और इसके लिए उन्हें आत्मनिर्भरता या आत्मसंयम बढ़ाने वाले भाषण की जरूरत नहीं थी.
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