14 मई 2020, दिव्यांश यादव
आज एक ऐसे समुदाय के बारे में आपको बताना चाहता हूं जो ना पुरुष है और ना ही महिला
यानी किन्नर समुदाय ।
यह समुदाय हमेशा से बधाइयों के जरिए ट्रेन बस में पैसे मांग मांग कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था परंतु जब से पूरा विश्व कोरोना संकट से दो चार हो रहा है इस समुदाय पर तो दिक्कतों का पहाड़ टूट पड़ा है।
हमारी मीडिया पशुओं, पक्षियों ,पुरुषों और महिलाओं के दिक्कतों की बात ना करके पाकिस्तान, चीन,अमेरिका और किंग जोंग उन के बनते बिगड़ते हालातों की ज्यादा देखभाल की है, लेकिन किन्नर समुदाय को पहले से ही एक अलग नजरिए से देखा जाता रहा है दरअसल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 45 लाख से ज्यादा किन्नर समुदाय रहता है लेकिन जब से कोरोना संकट हुआ है यह समुदाय भयंकर भुखमरी का शिकार हो रहा है क्योंकि ना तो हमने इस समुदाय के बारे में कुछ सोचा है और ना ही सरकार ने इसके बारे में कोई अच्छा प्रयास किया है।
दरअसल कुछ दिनों पहले इंदौर में किन्नर समुदाय के कुछ लोगों ने अपनी कमाई से लोगों को मास्क और राशन की व्यवस्था की थी हालांकि जब से पूर्ण तालाबंदी की शुरुआत हुई है तबसे यह समुदाय हर रोज भूख से दो-चार हो रहा है और सरकार ने इस समुदाय के लिए कोई भी खास योजना नहीं बनाई है ।
आज भी कुछ लोग इनसे और ज्यादा घृणित रूप में देखते हैं,ये ना ही किसी राशन दुकानों पर अपना राशन मांग सकते हैं क्योंकी इन्हे अभी भी हमारा समाज स्वीकार करने की चेष्टा ही नहीं करता ।
और तो और इन्हें अब घर में रहना मुश्किल हो चुका है क्योंकि भाड़े की वजह से कई लोग इन्हें घरों से निकाल रहे हैं आखिर यह लोग जाए तो कहां जाए ये भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है ?
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