17 जनवरी, 2020 शबाना अनवर
CAA के खिलाफ पुरे देश में चल रहे विरोध पर एक के बाद एक नेता के बयान सामने आ रहें हैं। अब इस मामले में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राज्य सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि शिष्टाचार के नाते राज्य सरकार को कोर्ट जाने से पहले उनसे अनुमति लेनी चाहिए थी. सरकार के पास कोर्ट जाने का अधिकार है लेकिन पहले उन्हें राज्यपाल को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी.
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘ये प्रोटोकॉल और तहजीब का उल्लंघन है. मैं इस पर गौर करूंगा कि क्या राज्य सरकार राज्यपाल की मंजूरी के बिना सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. अगर मंजूरी नहीं तो वो मुझे सिर्फ जानकारी दे सकते थे. वो लोग सु्प्रीम कोर्ट गए हैं, मुझे इसपर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन पहले उन्हें मुझे इसकी जानकारी जरूर देनी चाहिए थी. मैं संवैधानिक तौर पर प्रमुख हूं और मुझे इसके बारे में न्यूज पेपर से पता चलता है. जाहिर है, मैं सिर्फ एक रबर स्टैंप नहीं हूं.’
आगे क्या कहा –
नागरिकता संशोधन कानून (CAA ) के खिलाफ केरल विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया था. इस पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि इस प्रस्ताव की कोई कानूनी या संवैधानिक वैधता नहीं है, क्योंकि नागरिकता विशेष रूप से एक केंद्र का विषय है, इसका वास्तव में कुछ महत्व नहीं है. इससे पहले भी केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ केरल विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव को असंवैधानिक बताया था. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 245/46 और 256 का हवाला देते हुए कहा था कि केरल विधानसभा का प्रस्ताव गलत है और संविधान की भावनाओं के खिलाफ है. उन्होंने कहा था, ‘यह हैरान करने वाली बात है कि जिस सरकार ने संविधान की शपथ ली है, वह गैर संवैधानिक बात कर रही है कि नागरिकता संशोधन कानून राज्य में नहीं लागू होने देंगे. यह कानून संसद द्वारा पारित है. नागरिकता देना या लेना संविधान की सातवीं अनुसूची का विषय है और इस पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है. संसद नागरिकता संबंधी किसी विषय पर कानून बना सकती है.’
क्या कहा कानून मंत्री ने
कानून मंत्री ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 256 के तहत राज्य की शासकीय शक्ति इस तरह उपयोग में लाई जाएगी कि संसद द्वारा पारित कानून को लागू किया जा सके. उन्होंने कहा कि केंद्र के कानून को लागू करना राज्य सरकारों का संवैधानिक दायित्व है, जो राज्य सरकारें ऐसे प्रस्ताव पारित कर रही हैं या पारित करने की बात कर रही हैं, वो संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन कानून पर लागू नहीं होंगे. इस मसले पर राज्य सरकारों को कानूनी सलाह लेना चाहिए.
आपको बता दें कि केरल विधानसभा ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था, जिसका मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई वाले वाम मोर्चा और कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा ने भी समर्थन किया था. बीजेपी ने इसका कड़ा विरोध किया था. केरल के 140 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी का सिर्फ एक विधायक है.
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