14 दिसंबर 2019,कौशलेंद्र राज शुक्ला
“फांसी “फिल्मी दुनिया में आप ने जज साहब को कई बार देते सुना होगा। लेकिन आप सब क्या असल में जानते हैं कि आखिरकार फांसी कैसे होती है? आज एक बार फिर पूरे देश में फांसी का मुद्दा अपने उफान पर है और दोषियों के पास भी मौका ,माहौल और वक्त को देखते हुए बचने की कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही है,,,जी हां हम सब बात कर रहे हैं निर्भया के उन आरोपियों के बारे में जिनके हिस्से में मौत की सजा फांसी के रूप में किसी भी वक्त आ सकती कारण यह कि कानूनी रूप से क्षमा के सारे दरवाजे बंद नजर आ रहे हैं बस महामहिम से आखिरी उम्मीद का दरवाजा खुला था लेकिन दरिंदगी के बढ़ते अपराध के कारण ये दरवाजा भी जल्द बंद होने की कगार पर नजर आ रहा है किसी भी दिन याचिका खारिज हो सकती है और ब्लैक वारंट जारी हो सकता है ब्लैक वारंट यानी मौत का आखिरी पैगाम जानकारी के लिए आपको बता दें कि ब्लैक वारंट में फांसी की दिन तारीख और समय लिखा होता है ।आमतौर से गर्मियों में फांसी का समय सुबह 6:00 का होता है और सर्दियों में 7:00 का अगर फांसी की सजा इन चारों कैदियों को सुनाई जाती है तो यह आजाद भारत के 58,59,60,61में दोषी होंगे आपको बता दें कि आजाद भारत में पहली फांसी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को हुई थीऔर आखरी यानी 57 आतंकवादी याकूब मेमन को अगर देखा जाए तो इन चारों की मौत की आखिरी गिनती शुरू हो गई है और आने वाले वक्त में किसी भी दिन फांसी का ऐलान हो सकता है आपको बता दें कि डेथ वारंट जारी होने के बाद कैदियों को एक स्पेशल डेथ सेल में रखा जाता है जिसके मुस्तैदी चाक-चौबंद होती है जहां पंखा तो दूर कैदियों के पजामे में नारा तक नहीं होता पूरे 24 घंटे में सिर्फ आधे घंटे का समय कैदियों को टहलने के लिए दिया जाता है,,,, निगरानी कर रहे पुलिसकर्मियों की ड्यूटी हर 2 घंटे में बदलती रहती है और इस निगरानी की जिम्मेदारी तमिलनाडु स्पेशल पुलिस की होती है। ब्लैक वारंट जारी होने के बाद सबसे पहले जल्लाद और दोषियों की फांसी के फंदे का इंतजाम किया जाता है आपको बता दें कि आखिरी तीन फांसीया जो आजाद भारत में हुई थी यानी याकूब मेमन, अफजल गुरु और कसाब उसमें कोई पेशेवर जल्लाद नहीं था तीनों मामलों में लीवर पुलिस वालों ने ही खींचा था ।फांसी के लिए जो रस्सी इस्तेमाल होती है वह कोई आम रस्सी होती उसे मनीला रोप कहते हैं और वह बिहार के बक्सर जेल में बनती है रस्सी की कीमत मात्र ₹860 होती है पर बिहार से दिल्ली लाने पर रस्सी की कीमत कम और लाने की लागत ज्यादा हो जाती है।बिहार से दिल्ली रस्सी जाने के बाद फांसी का ट्रायल होता है अब आप सोच रहे होंगे कि वह कैसे तो आपको बता दें कि दोषी की लंबाई चौड़ाई का एक डमी तैयार किया जाता है और उसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है। आपको साथ ही साथ बताते चलें कि जेल में फांसी के दौरान अभ्यास सत्र के समय अफजल गुरु की फांसी का फंदा दो बार टूटा था फांसी के फंदे की लंबाई कैदियों के वजन के ऊपर भी निर्धारित होती है दरअसल जिस तरह से फांसी दी जाती है उस तख्ते से कुएं की लंबाई 15 फीट की होती है ताकि जमीन और धूल के बीच कोई फासला न हो अगर फांसी पर लटकाए जाने वाले शख्स का वजन 45 किलो या फिर उससे कम होता है तो रस्सी की लंबाई लगभग 8 फुट रखी जाती है और वजन ज्यादा हो तो फंडे की लंबाई 6 फिट की जाती है फांसी देते वक्त फांसी घर में दोषी के साथ 3 लोग मौजूद होते हैं जिसमें जेल सुपरिटेंडेंट sdm और जलाद आपको बता दें कि आजाद भारत में तिहाड़ जेल में दो कैदियों एक साथ फांसी दी गई थी जो थे रंगा बिल्ला पर कभी भी चार कैदियों को एक साथ नहीं,,, लेकिन ऐसा नहीं है कि कभी भी चार कैदियों को किसी भी जेल में एक साथ फांसी नहीं दी गई थी आपको बता दें कि पुणे की जेल में चार कैदियों को एक साथ फांसी दी गई थी अब देखना यह होगा कि निर्भया के कैदियों को एक साथ फांसी दी जाती है या फिर कैदियों की फांसी के लिए अलग-अलग तारीख मुकर्रर की जाती है?
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