मुस्कान रस्तोगी, 01/05/2020.
आजादी के बाद हमारे पूर्वजों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को चुना था। विश्व में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का जोर था। कोई सौ साल लंबे स्वतंत्रता संग्राम के बाद हमें आज़ादी मिली थी। हमें अपने नागरिकों की सुख समृद्धि के लिए अपनी व्यवस्थाएं बनाना था। अपनी अधिकांश आबादी के लिए कमाई और आजीविका के मौके पैदा करने थे।
अनाज के मामले में देश आत्म निर्भर नहीं था। पर्याप्त कपड़ा और मकान भी नहीं था। इन सारे कामों के लिए श्रम बल के प्रबंधन पर सोचने की जरूरत थी। संसाधनों के बगैर ये काम कैसे शुरू हो पाए होंगे? यह आज भी एक रहस्य है। तब से आज तक सत्तर साल में अगर हम अपनी अर्थव्यवस्था का आकार 200 लाख करोड़ का देख पा रहे हैं तो यह देश के किसानों खेतिहर मजदूरों और औद्योगिक मजदूरों के योगदान के बिना संभव नहीं था।
ये अलग बात है कि हमारे पास आज ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे हम कामगारों, किसानों और खेतिहर मजदूरों के प्रतिदान का सही सही मूल्यांकन कर सकें।
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