18 June 2020,Neha Pandey
भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प में शहीद हुई कर्नल संतोष बाबू के माता-पिता को अपने बेटे पर गर्व है। भले ही उन्होंने अपना इकलौता बेटा खो दिया लेकिन उन्हें खुशी है कि उनके बेटे ने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया है।
लद्दाख में 15 जून की रात भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद होने की खबर सुनकर किसी की आंखों में आंसू हैं तो किसी के सीने में गुस्सा लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जिसे सिर्फ गर्व है। सीमा पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू के पिता बी उपेंदर बेटे के जाने से टूट जरूर गए हैं लेकिन हारे नहीं हैं। वह कहते हैं, ‘देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे मेरे बेटे पर गर्व है।’
कर्नल संतोष की पत्नी संतोषी को सबसे पहले उनके शहीद होने की सूचना दी गई। उनका पार्थिव शरीर आज शम्साबाद एयरपोर्ट से सूर्यपेट सड़क के रास्ते लाया जाएगा।
बैंक से रिटायर हो चुके कर्नल संतोष के पिता बताते हैं कि कर्नल ने अपने 15 साल के सेना के करियर में कुपवाड़ा में आतंकियों का सामना किया है और आर्मी चीफ उनकी तारीफ कर चुके हैं। उपेंदर ने ही कर्नल को सेना जॉइन करने के लिए प्रेरित किया था और उन्हें पता था कि इसमें खतरे भी हैं। वह कहते हैं, ‘मुझे पता था कि एक दिन आएगा जब मुझे यह सुनना पड़ सकता है जो मैं आज सुन रहा हैं और मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार था। मरना हर किसी को है लेकिन देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे अपने बेटे पर गर्व है।’
कर्नल संतोष ने आंध्र प्रदेश के कोरुकोंडा में सैनिक स्कूल जॉइन किया था और उसके बाद सेना के नाम अपना जीवन कर दिया था। उन्होंने 14 जून को अपने घर पर बात की थी और जब पिता ने उनसे सीमा पर तनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘आपको मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए। मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूं। हम तब बात करेंगे जब मैं वापस आ जाऊंगा।’ यह उनकी अपने घरवालों से आखिरी बातचीत थी। अगली रात को ही कर्नल संतोष गलवान घाटी में शहीद हो गए कर्नल ने अपने पैरंट्स को बताया था कि जो टीवी पर दिखाई दे रहा है, जमीन पर सच्चाई उससे अलग है।
कर्नल संतोष के पिता ने बताया, ‘मैं सेना जॉइन करना चाहता था लेकिन कर नहीं सका। जब मेरा बेटा 10 साल का था तब मैंने उसमें यूनिफॉर्म पहनकर देश की सेवा करने का सपना जगाया।’ सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद कर्नल संतोष NDA चले गए और फिर IMA। कर्नल के पिता और मां मंजुला तेलंगाना के सूर्यपेट में रहते हैं। उनकी पत्नी संतोषी 8 साल की बेटी और 3 साल के बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं। कर्नल के पिता कहते हैं, ’15 साल में मेरे बेटे को चार प्रमोशन मिले। पिता के तौर पर मैं चाहता था कि वह खूब ऊंचाइयां चूमे। मैं जानता था कि सेना के जीवन में अनिश्चितता होती है, इसलिए हमें संतोष है कि उसने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दे दिया
कर्नल की मां अपने बेटे की राह देख रही थीं। वह उनसे हैदराबाद ट्रांसफर लेने के लिए कहती थीं ताकि वह परिवार के पास आ सकें। वह कहती हैं, ‘मैं खुश हूं कि उसने देश के लिए अपना जीवन दे दिया लेकिन मां के तौर पर दुखी हूं। मैंने अपने इकलौता बेटा खो दिया।’ वह याद करती हैं, ‘उसकी पढ़ाई के लिए पिता ने कोरुकोंडा के पास ट्रांसफर ले लिया। लॉकडाउन से पहले वह दिल्ली में छुट्टी पर था। लॉकडाउन की वजह से छुट्टी एक्सटेंड हो गई और एक महीने पहले लेह के पास ड्यूटी पर चला गया।’
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.