उपेन्द्र कुमार पासवान
13 अप्रैल 2020
कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए राज्य की सरकार और केंद्र की सरकार ने मिलकर विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं. 21 दिन का लॉकडाउन कल समाप्त हो जाएगा लेकिन कोरोना जैसे महामारी से काबू नहीं पाया गया इसी बीच केंद्र सरकार राज्यों के मुख्यमंत्री का सहारा लेकर फिर एक बार कोरोना जैसे संक्रमण से निपटने के लिए दूसरा बड़ा फैसला लेने का निर्णय लिया है. एक तरफ कोरोना जैसे महामारी से लोग झुझ रहे है वहीं दूसरी तरफ आम आदमी के लिए संकट का घड़ी आ गई है, लोगों के पास ना रहने की व्यवस्था है ना खाने की व्यवस्था है. ऐसे में भूखे प्यासे वैसे लोग का जीना हराम हो गया है जो लोग अपना जीवन तभी चला पाते जब वह दिन भर अगर मजदूरी करते तो फिर रात में भोजन का व्यवस्था कर पाते. झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है, अगर देखा जाए तो कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए 21 दिन का लॉकडाउन दसियो लाख बच्चों की जिंदगी में अफरा-तफरी मचा दी है. लगभग हजारों की संख्या में बच्चे रोजाना हेल्पलाइन पर कॉल करके मदद मांग रहे हैं, जबकि कितने को भूखे पेट सोना पड़ रहा है. महामारी से निपटने के लिए पूरा देश बंद है भारत में 47.2 करोड़ बच्चे हैं और दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है. कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि गरीब परिवार के 4 करोड़ बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इनमें वह बच्चे शामिल है जो ग्रामीण इलाकों में खेतों में काम करते हैं,और जो शहर में कूड़ा बीनने का काम करते हैं, चौराहों पर गुब्बारे पेन पेंसिल खिलौना या भीख मांगने वाले बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. लॉकडाउन में सभी को घर पर ही रहने का हिदायत दिया जा रहा है, लेकिन बेवस वह लोग जो सड़कों पर अपना जीवन यापन करने वाले लोग फ्लाईओवर के नीचे रहने वाले क्या वह कहां जाए?.ऐसे बच्चे विभिन्न शहरों में रहकर अपना खुद पेट पालने के लिए जिम्मेदार है. लेकिन अभी इनके मुंह की रोटियां छीन लिया गया है मुंह पर ललाट पड़े है, अगर कोई खाना सड़क पर बांटने वाले पहुंचते हैं तो बच्चे अपनी प्यास बुझाने के लिए रोड पर दौड़ निकलते दिखाई देते है फिर भी उसे पेट भर भोजन नहीं मिल पाता है. कुछ वीडियो भी ऐसे सामने आता है देख कर आंख से आंसू छलक उठते हैं अपने आपको बच्चे हलात बाय कर रहे हैं देश के कई शहरों में भी गैर सरकारी संगठन और प्रशासन बेसहारा बच्चों और बेघर लोगों मैं खाना बांट रहे हैं. लेकिन यह समस्या इतनी बड़ी है कि डराने वाली है.







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