23 May 2020, Shivani Rajwaria
विश्व स्तर पर कोरोना वायरस से चल रही इस लड़ाई में अगर सबसे ज्यादा मार किसी पर पड़ रही है तो वह सिर्फ एक नाम है मजदूर! सभी श्रेणी में मजदूर श्रेणी ही कोरोना वायरस और उससे बचने के लिए लगाए गए लॉक डाउन की भरपाई अपनी ज़िंदगी को गवा कर कर रही हैं।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में गेहूं की तरह पिस रही मजदूरों की जिंदगी कई सवाल खड़े कर देती है पर हालात ज्यों के त्यों बने रहते हैं। सरकार वादे तो कर रही है संवेदना भी व्यक्त कर रही है पर जमीनी स्तर पर तो मजदूर मर रहा है उसका घर उज़ड़ रहा है।उसके बच्चे अनाथ हो रहे हैं ।दिन पर दिन एक के बाद एक हो रहे हादसे मजदूरों के मरने के आंकड़े को बढ़ाते जा रहे हैं यह दर्दनाक हादसे दिल को दहला देने वाले हैं वजह बहुत सारी है पर शायद सुविधाएं बहुत कम।
दैनिक भास्कर के एक आंकड़े के अनुसार मजदूरों के मरने की संख्या 11 मई तक 418 पहुंच गई थी इसमें कुछ मजदूरों ने सुसाइड किया तो कुछ पलायन के चलते अपनी जिंदगी गवा बैठे कुछ भुखमरी का शिकार हुए तो कुछ आर्थिक तंगी के कारण चल बसे।कुछ तो समय पर मेडिकल सहायता न मिलने पर ही इस दुनिया से अलविदा कह गए तो कुछ पैदल चलने और लाइन में खड़े रहने से ना झेलने वाली थकावट को खुद से मुक्त करके चले गए तो वही कुछ मज़दूर लॉक डाउन से जुड़े नियमों को तोड़ने पर अपनी जिंदगी पर अंकुश लगा बैठे कुछ हिंसा की शिकार हो गए और कुछ का तो अज्ञात कारण ही नहीं पता चला।कुल मिलाकर 11 मई तक की रिपोर्ट यह बताती है कि 418 मजदूरों की जान चली गई।
इसके बावजूद मरने वाले मजदूरों का यह आंकड़ा रुकने की वजह बढ़ने की दिशा में है जिस दिन से देश में लोग डाउन शुरू हुआ है उसी दिन से मजदूरों के सर पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है वह भी ऐसा पहाड़ जो सिर्फ उनकी बेबसी पर उन्हें रुला कर,मज़बूरी की मार से गिरा कर उन्हें सिर्फ बेइज्जत ही नहीं कर रहा बल्कि उनकी जिंदगी के साथ खेल रहा है।
इन आंकड़ों के बाद से मजदूरों के साथ हुए हादसों की जो खबरें सामने आई उन्होंने तो लोगों का कलेजा ही बाहर निकाल कर रख दिया अब तक जो लोग यह कह रहे थे की सरकार द्वारा सब कुछ मिलने के बाद भी मजदूर आत्मदेह करने पर उतारू है आज वह भी उनकी इस स्थिति को देखकर शोकमय हैं।
गुजरात से मध्य प्रदेश के लिए निकली एक गर्भवती महिला मजदूर ने सवारियों की खचाखच और गर्मी की तपिश के कारण दम तोड़ दिया। वही यूपी के बुलंदशहर से गया के लिए अपने घर को साइकिल पर निकला मजदूर सड़क हादसे का शिकार हो गया। किसी अज्ञात वाहन ने घर पहुंचने की उसकी उम्मीद को उसकी साइकिल के साथ ही चकनाचूर कर दिया।
8 मजदूर उत्तर प्रदेश के गुना सड़क हादसे का शिकार हो गए तो वही मुजफ्फरनगर में 6 मजदूरों की जाने सड़क दुर्घटना की बलि चढ़ गई। हैदराबाद से उड़ीसा तक का सफर तय करने के लिए पैदल निकला मजदूर रास्ते में लू लगने के कारण मौत को मात नहीं दे पाया। वहीं 15 मई को मध्य प्रदेश के गुना सड़क हादसे में तीन मजदूरों ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
अभी भी ये मौतों का सिलसिला जारी हैं पर कब तक हमारें देश में यूं ही मज़दूर वर्ग पर उसकी मेहनत का ये सिला मिलता रहेगा?
कुछ बुद्धिजीवियों का यह कहना है कि मजदूर खुद अपनी जान से खेल रहे हैं लेकिन सवाल तो यह उठता है कि आखिर मजदूर अपनी जान पर क्यों खेल रहे है?
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