15 दिसंबर 2019 नीतीश पाठक
जब हमने इसके बारे में खोजबीन शुरू की, तो बहुत ही कमाल की जानकारी हमारे सामने आई. 1838 में एक किताब आई थी मैरी स्कीडलर द एम्बर विच जिसका अनुवाद 1844 में अंग्रेजी भाषा में हुआ. इसमें जादू टोना को लेकर लिखा गया था. इसमें जिस कहानी का जिक्र है वो घटना 1630 में घटी थी. जिसमें एक न्यायाधीश ने किसी को सजा सुनाई जिसका वर्णन था. घटना काल्पनिक भी हो सकती है क्योंकि हमारे पास भी बहुत ज्यादा साक्ष्य नहीं हैं. इस किताब में जो कहनी है उसमें एक न्यायाधीश के द्वारा एक महिला को फांसी की सजा सुनाए जाने का जिक्र है. जिसमें न्यायाधीश उसे सजा सुनाने के बाद अपने हाथ में पकड़ी लकड़ी की छड़ी को तोड़ देता है और उसे सामने फेंक देता है. बाद में ये प्रथा धीरे धीरे परंपरा बन गई और जल्दी ही यूरोप से होते हुए पूरी दुनिया में फैल गई.
अब सवाल ये है कि आखिर जज ऐसा क्यों करते है. तो आपको बताते हैं. हमारे कानून में फांसी की सजा सबसे बड़ी सजा है. क्योंकि इससे व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है, इसलिए जज सजा को मुकर्रर करने के बाद पेन की निब तोड़ देता है और उम्मीद की जाती है कि आगे से ऐसे जघन्य अपराध ना हों. साथ ही साथ इसका मतलब ये भी होता है कि एक व्यक्ति की जीवन लीला समाप्त होती है और सज़ा के बाद उस पेन का इस्तेमाल दोबारा न हो सके. यानि व्यक्ति के साथ पेन को भी खत्म कर दिया जाता. इसके पीछे एक और कारण है कि निब तोड़ दिए जाने के बाद खुद जज को भी यह अधिकार नहीं होता कि वह खुद उस जजमेंट की समीक्षा कर सके या उस फैसले को बदल सके. इसलिए जिस जजमेंट को वो कलम से लिखता उसे तोड़ देता है.
हम यहां पर आपको एक बात स्पष्ट कर दें अब कलम को तोड़ा तो नहीं जाता लेकिन जजमेंट लिखने के बात निब की पांइट को जोर से पेपर पर मारा जाता है और उस पैन को वहां से हटा दिया जाता है. इसका कारण है कि पहले जजमेंट लिखते समय इंक वाले पैनों का इस्तेमाल हुआ करते था जिसमें अलग से निब लागाई जाती थी. लेकिन आज कल बालपैन का जमाना है जिसमें निब नहीं होती रिफिल होती है.







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