उपेंद्र कुमार पासवान ,
2 अप्रैल 2020
कोरोनावायरस के खतरे के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया था.देशबंदी के ऐलान के बाद पहली बार गुरुवार को वे अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक में शामिल होंगे,पिछले कुछ दिनों में अप्रवासी मजदूरों को अपने शहर लौटने से रोकने से लेकर उनके खाने के इंतजाम तक के लिए राज्यों को भारी भरकम फंड्स का ऐलान करना पड़ा है. महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को इन फंड्स को जुटाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है,ऐसे में माना जा रहा है कि पीएम के साथ मीटिंग के दौरान इन राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र से बकाया भुगतान चुकाने की मांग कर सकते हैं.
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इनमें से ज्यादातर राज्यों ने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर बकाया चुकाने की मांग की थी.पीएम के साथ पिछली मीटिंग में जहां सभी मुख्यमंत्री मौजूद थे,लेकिन बोलने के लिए सिर्फ 8 सीएम को ही न्योता दिया गया था,ऐसे में इस बार बाकी बचे मुख्यमंत्री पीएम को राज्य पर पड़ रहे आर्थिक बोझ के बारे में बताने की कोशिश करेंगे.
कई राज्य के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि केंद्र ने 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान बिना उन्हें विश्वास में लिए ही कर दिया.ऐसे में प्रवासी कामगारों को राहत मुहैया कराने का भार राज्यों के कंधों पर ही आ गया.इन हालातों में अपर्याप्त आर्थिक समर्थन की वजह से केंद्र और राज्यों में लगातार विश्वास की कमी पैदा हो रही है.
महाराष्ट्र राज्य सरकार से जुड़े एक अफसर ने बताया कि उद्धव शासन ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर 25,000 करोड़ रुपए तुरंत रिलीज करने के लिए कहा था,इसमें 18,000 करोड़ राज्य को जीएसटी के मुआवजे पर देने की मांग की थी, फंड की कमी के चलते राज्य में राहत कार्यों से जुड़े काम में काफी परेशानियां आ रही हैं.
एक अन्य अफसर ने बताया कि फंड्स की कमी के चलते कई राज्यों को ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं, जो उन्होंने पहले कभी नहीं उठाए,जैसे ओडिशा, आंध्र प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी में कटौती करने या उसे देर से देने का फैसला किया है.यह कर्मचारियों के साथ किए गए कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन जैसा है.
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