18 नवंबर 2019 कौशलेंद्र राज शुक्ला
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी ने जो अपने तर्क से उल्टी पट्टी पढ़ाई है ।उससे सभी नेताओं और भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की बोलती तो बंद हो गई है, लेकिन जो तर्क उन्होंने दिया है वह सरासर गलत है। मातृभाषा को तहजीब ना देकर जनाब ने विदेशी भाषा को पढ़ने और पढ़ाने का आधार बनाया है और दूसरी सभी भाषाओं को रद्द कर दिया है ,जो कि यह दिखाता है कि हमारे देश के नेता अपनी वाहवाही लूटने के लिए अपनी मातृभाषा को ही तवज्जो नहीं दे रहे हैं। आइए आपको बताते हैं विस्तार से कि पूरा मामला है क्या दर असल आंध्र प्रदेश की जगमोहन रेड्डी सरकार ने राज्य में सिर्फ अंग्रेजी भाषा को ही पढ़ने पढ़ाने की अनुमति दी है। मतलब अगर आंध्र प्रदेश का बच्चा उर्दू या तेलुगु में कुछ सीखना चाहे तो उसे वह पढ़ने की इजाजत नहीं है, जब इसको लेकर राजनीतिक भूचाल खड़ा हुआ ,और लोगों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह कहकर उनकी बोलती बंद कर दी कि आप हमको यह बता दीजिए क्या आपके घर के बच्चे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में नहीं पड़ते और जिसको लेकर हमारे देश के हुक्मरानों के पास कोई जवाब नहीं था।उन्होंने अपने तर्क में यह भी कहा कि अंग्रेजी विश्व भाषा है जिससे देश में और विदेशों में भी रोजगार पाना आसान होगा और हमारे देश का लिटरेसी रेट भी बढ़ेगा । जगमोहन का सवाल और तर्क दोनों ही सही पर यह बात समझ में नहीं आती कि जगमोहन ने ऐसा क्यों किया जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश के नेता नोट और वोट के भूखे हैं इसके अलावा उनको कुछ नहीं दिखता। अगर उनको कुछ दिखता भी है तो शायद उस वक्त उनकी सोच को लकवा मार जाता है? या फिर वह उससे आगे कुछ सोचना ही नहीं चाहते और दूसरे देशों का इतिहास वह आंकड़े पढ़ने ही नहीं चाहते। आपको बता दें कि जितने भी देश शिक्षा और रोजगार के मामले में संपन्न है उसमें विदेशी भाषा को तवज्जो नहीं दी जाती वह अपनी देश की ही भाषा में बच्चों को पढ़ाते हैं और उसी से वह रोजगार और अन्य संसाधनों का बंदोबस्त करते हैं ऐसे एक देश ही नहीं बल्कि कई देश हैं जो इस बात का साक्षात प्रमाण देते हैं। लेकिन हमारे देश के नेता विदेशी भाषा को ज्यादा तवज्जो देते हैं लेकिन फिर भी हमारा देश उतना प्रगति नहीं कर पाया है जितनी आज उसे करनी चाहिए।जगमोहन जैसे युवा नेताओं को तो देश में गुलामी भाषाओं को हटाकर एक भाषा को समर्थन देना चाहिए पर समझ में नहीं आता की जगमोहन जैसे युवा नेता विदेशी भाषा को अपने राज्य का गुलाम क्यों बना रहे हैं वह अपने राज्य की क्षेत्रीय भाषा को तवज्जो क्यों नहीं दे रहे और तो और वह अपने बुजुर्ग नेताओं को भी उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हैं जो कि सरासर गलत है।
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