01 June 2020,Shivani Rajwaria
शायद ही भारतीय सिनेमा में कोई ऐसा कलाकार होगा जिसके लिए उसके फैंस की दीवानगी इस कदर रही हो और खासकर लड़कियों की! उनकी अदायगी ने लोगों को मदहोश कर दिया था उनके अभिनय ने पूरी हिंदी सिनेमा में जादू बिखेर दिया था वह जादू अभी भी बरकरार है उनकी स्मृतियों के रूप में! आजाद हिंदुस्तान का सबसे मशहूर हीरो जिसके नाम से ही नहीं उसकी पोशाक को देख कर लड़कियां आत्महत्या करने की कोशिश कर लेती थीं।हिंदी सिनेमा का पहला रोमांटिक हीरो जिसने अपनी दिलकश अदायेगी से हिंदी सिनेमा में धूम मचा दी।
बचपन की झलक…
पंजाब में शंकरगढ़ के मध्यमवर्गीय परिवार में किशोरीमल आनंद के घर 26 सितम्बर 1923 को एक बालक ने जन्म लिया।जिसका नाम रखा गया धरम देव आनंद। जिसने अपनी बुलंदियों से अपने नाम को हिंदी सिनेमा में “देवानंद” के नाम से अमर कर दिया।
देव का बचपन संघर्षों के साथ गुज़रा। बचपन से ही प्रतिभावान देव पढ़ाई में काफी रुचि रखते थे और लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से परिवार की आर्थिकतंगी के चलते उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। देव आगे पढ़ना चाहते थे उनके पिता पेशे से वकील थे लेकिन पारिवारिक आर्थिक तंगी हमेशा से रहीं जिसके कारण कॉलेज छोड़ उन्हें नौकरी की ओर रुख करना पड़ा।
मुंबई का सफ़र…
देवानंद 30 रुपए जेब में रखकर मुंबई की सड़के नापने पहुंचे। नौकरी की तलाश में करते करते मुंबई के मिलिट्री सेंसर ऑफिस में उन्हें लिपिक की नौकरी मिल गई जिसमें उनका काम सैनिक की आई चिठ्ठियों को उनके परिवार वालों को पढ़कर सुनाना होता था। नौकरी करते करते उन्हें प्रभात टॉकीज की एक फिल्म “हम एक हैं”में काम करने का मौका मिला यह तो वही हुआ जैसे किसी ने उनकी मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो देव हमेशा से हिंदी सिनेमा में काम करना चाहते थे₹160 प्रतिमाह की नौकरी छोड़ उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर कदम बढ़ाया।सन 1946 में आई देव की पहली फ़िल्म “हम एक हैं”भले ही उतनी सफल ना हुई हो लेकिन उसके बाद देवानंद का हिंदी सिनेमा में जो सफर शुरू हुआ वह फिर थमा नहीं।
सन् 1948 में फ़िल्म “ज़िद्दी”की सफलता के बाद देवानंद का करिश्मा पूरे हिंदी सिनेमा में छा गया।
सन् 1951 में आई फ़िल्म”बाज़ी” में अभिनेत्री गीता बाली और कल्पना कार्तिक के साथ दर्शकों ने खूब सराहा।
सन् 1954 में बनी फ़िल्म “टैक्सी ड्राइवर” ने तो लोगों का दिल पूरी तरह जीत लिया इसी फ़िल्म के चलते देव साहब,अभिनेत्री कल्पना कार्तिक एक दूसरे के क़रीब आए और शूटिंग के दौरान लंच ब्रेक में दोनों ने एक दिन शादी भी कर ली।अपनी पत्नी कल्पना के साथ उनका ये सफ़र मरते दम तक रहा।
सन् 1957 में आई फ़िल्म “नौ दो ग्यारह”में देव और कल्पना की जोड़ी ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया पर इसी दौरान बेमिसाल सदाबहार अभिनेता देवानंद एक अजीब विवाद में फंस गए। जिसके कारण उन्हें कोर्ट के आदेश का पालन करना पड़ा।
दरअसल, सन् 1958 में देव साहब की फ़िल्म”कालपानी”रिलीज़ होनी थी। बॉलीवुड के हैंडसम स्मार्ट देवानंद अपने स्टाइल के लिए भी बेहद जाने जाते थे उनके फैशन,स्टाइल को लोग फ़ॉलो किया करते थें। जिसके चलते उनके काले कोर्ट पैंट पर ही रोक लगा दी गई थी।
क्यों लगी थी काला कोर्ट पैंट पहनने पर कानूनी रोक…
स्टाइल आइकॉन देवानंद किसी भी पब्लिक प्लेस में काला कोर्ट पैंट नहीं पहन सकते थे। किस्सा कुछ इस प्रकार है कि देव साहब को उनके चाहने वाले बहुत प्यार करते थें देव साहब की एक झलक के लिए दीवाने रहते थें। सबसे ज्यादा संख्या में लड़कियां थीं जो उनके लिए मरने से भी पीछे नहीं रहती थीं कुछ ऐसे ही किस्से है जो बताते हैं कि जब देव साहब काला कोर्ट पैंट पहनते थे तो लड़कियां उन्हें देखकर अपनी जान देने पर आदा हो जाती थी ये घटनाएं इतनी बढ़ गई थी कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया और देवानंद को कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए पब्लिक प्लेस में काला कोर्ट पैंट पहनना बंद करना पड़ा।
देव साहब ने हर तरह के किरदारों से दर्शकों को लुभाया है जिसमें चाहें सन् 1961 में आई फ़िल्म”हम दोनों”में निभाया डबल रोल हो या 1963 में “तेरे घर के सामने”में एक आर्किटेक्ट की भूमिका हो तमाम किरदारों को अपने अभिनय से जीवंत करने वाले देवानंद सबके दिलों पर राज करते थें।
सन् 1965 में आई फ़िल्म “गाइड”जो लेखक आर के नारायण के एक उपन्यास पर आधारित थी काफी आलोचनाओं में रही इस फ़िल्म में देव साहब के अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह फ़िल्म फ़िल्म इंडस्ट्री की मास्टर पीस मानी जाती है।
सन् 1967 में देवानंद के ही निर्देशन में बनी “ज्वैलथीफ़”बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी।
70 के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म “जॉनी मेरा नाम”ने देवानंद, हेमामालिनी की जोड़ी को सुपरहिट कर दिया था।
“हम सब एक हैं” से हिंदी सिनेमा में सनम,पतिता, लवमेरिज़,मुनीम जी,मुंबई का बाबू, माया,जब प्यार किसी से होता है,महल,काला बाज़ार,देश परदेश,बनारसी बाबू,मिस्टर प्राइम मिनिस्टर,हरे रामा हरे कृष्णा, हमसफ़र,फंटूश,गेम्बलर,तमाम फिल्मों से अपने दर्शकों के दिलों में रहने वाले देवानंद साहब सिर्फ अपने अभिनय में ही नहीं माहिर थे वह एक बहुप्रतिभामान व्यक्ति थे अपने निर्देशन,प्रोडक्शन से तमाम फिल्मों को रोशनी दी है।
आखिरकार वो दिन भी आ गया जब देव साहब का यह सफ़र थमने की कगार पर आ पहुंचा।लंदन के द वॉशिंगटन मे फेयर होटेल में 03 दिसंबर 2011 को आख़िरी सांस ली और हिंदी सिनेमा के लेजेंड सदाबहार हैंडसम फ़ैशन आइकॉन हीरो ने दुनियां को अलविदा कह दिया।
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