14 जनवरी 2020 कौशलेंद्र राज शुक्ला
बीते रोज मैंने आपको एक तश्वीर दिखाई थी जिसमें जगह थी झारखण्ड का मोराबादी मैदान और मौका था झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन ताजपोशी का ,,जहाँ जिक्र मैंने विपक्ष के एकजुट होने का भी किया था। अगर आप की याददास्त पक्की हो तो विपक्ष के जमावडे की तश्वीर भी आपको दिखाई थी और इस प्रश्न के साथ आपसे विदाई ली थी की क्या सियासी बॉक्सऑफिस पर मोदी के विरोधियो की नई पिक्चर चलेगी या नहीं ? आज फिर कुछ दिनों के बाद इसका जिक्र कर रहा हू। कुछ यूँ समाज लीजिये की आज इस पिक्चर के फ्लॉप या सुपरदुपर हिट होने की खबर आपको बताने जा रहा हू। दरसल आज विपछ के 20 दलों ने एक जॉइंट मीटिंग की जिसमे में CNN यानि CAA ,NRC और NPR के मुद्दों पर बात हुई और कई विश्विद्यालयों परिसरों में हुई हिंसा के बाद पैदा हुए हालत और आर्थिक मंदी पर भी चर्चा हुई। एक प्रस्ताव भी पास हुआ जिसमें कहा गया की ”हम नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था का पूरी तरह कुप्रबंधन किए जाने के कारण बड़ी संख्या में लोगों के सामने पैदा हुई जीविका की खतरनाक स्थिति को लेकर अपनी चिंता प्रकट करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार करने की बजाय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।विपक्षी दलों ने कहा कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी एक पैकेज है, जो असंवैधानिक है तथा गरीब, दबे-कुचले लोग, अनुसूचित जाति-जनजाति और भाषायी व धार्मिक अल्पसंख्यक इसके मुख्य निशाने पर हैं। खैर ये सब तो देश की प्रमुख समस्या है और जिसको मुद्दा बना कर विपछ सरकार को निसाने पर लेना चहता है। ये सब तो आप पहले भी टीवी चैनेलो और न्यूज़ साइट्स पर देख चुके होंगे लेकिन जो बात अपने गौर नहीं करी होगी बात उसकी करते है दरसल आज इस मीटिंग में विपछ के 20 दलों ने सिरकत की जिसमें कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद, भाकपा के डी राजा, रालोद के अजित सिंह सहित 20 दलों के नेता शामिल हुए।पर इस बैठक में शिवसेना, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी शामिल नहीं हुई है। ऐसे में सवाल ये उठता की जब विरोध एक ही मुद्दे है तो फिर विपक्ष एक जुट क्यों नई हो पा रहा है। क्यों विचार एक होने के बाद चाल एक नई हो पा रही है जो तस्वीर 29 दिसंबर को देश के सामने आई थी उसमें जो शक्ति प्रधरसान हो रहा था उसकी ताकत कहा चली गई सवाल ये है की क्या ये तल्खी है या फिर सियासी समीकरण बदलते हुए नेता की चाल कहना मुश्किल है। पर इतना जर्रूर है जो हलचल बीजेपी के महकमे में हेमंत सोरेन के ताजपोशी के बाद तेज हो गयी थी वो कुछ देर के लिए जर्रूर शांत हो गयी होगी इस उम्मीद के साथ की अभी कोई दिक्कत नही है की विपछ की चुनौती सरकार के ऊपर हावी पड़ रही है।
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