साधु संतों का दिव्य संसार अखाड़ों की रहस्यमयी,परंपरा, इतिहास,कब और कैसे हुई शुरुआत ?
अखाड़ों का प्रमुख उद्देश्य समाज को धर्म और संस्कृति की गहराइयों से जोड़ना और समाज में एकता बनाए रखना है। कुंभ मेले में इनकी उपस्थित श्रद्धालुओं को भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की दिव्यता का अनुभव करती है।
2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले की तैयारी जोरों से चल रही यह धार्मिक आयोजन न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है बल्कि भारत की संस्कृतिक और आध्यात्मिक को दर्शाने वाला एक उत्सव भी है महाकुंभ में अखाड़ों और उनके साधु संतों की उपस्थिति श्रद्धालुओं के लिए विशेष होती है। करोड़ों लोगों की भीड़ के बीच में ये दिव्य व्यक्ति मानो आध्यात्मिक ऊर्जा का संसार करते।
2025: का महाकुंभ अखाड़ों और उनके साधु-संतों कि उपस्थित के बिना अधूरा है ये अखाड़े न केवल भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का प्रतीक है । बल्कि समाज में नैतिकता और धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले मुख्य स्तंभ भी है।
कुंभ मेले में अखाड़ों की परम्परा उनके उद्देश्य और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की भूमिका को समझना और इसकी गहराई तक जाना एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
अखाड़ा शब्द और शाब्दिक अर्थ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
‘अखाड़ा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ कुश्ती का मैदान है, लेकिन इसका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व इससे कहीं ज्यादा है।
हमारे यहां माना जाता है कि अखाड़ा की शुरुआत 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र-शास्त्र में निपुण साधुओं का ऐसा संगठन बनाता था, जो किसी भी बाहरी आक्रमण से धर्म और संस्कृति की रक्षा कर सके। इन साधुओं का कोई अपना पारिवारिक बंधन नहीं होता था। जिससे वे भौतिक इच्छाओं से दूर रहकर अपने धर्म के लिए समर्पित रहते थे।
शिवम सिंह
BJMC 1st Year
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