Roushan Kumar
भारत सरकार द्वारा विशेष पेंशन प्रणाली देश के विकाश और विनियमन हेतु पेंशन निधि विनियामक और विकाश प्राधिकरण (पीएफआरडीए ) 10 अक्टूबर 2003 को स्थापित किया गया | इस पेंशन प्रणाली को मुख्य रूप से 1 जनवरी 2004 को अपने क्रिया में लाया गया | भारत सरकार के द्वारा लाए गए इस विशेष पेंशन प्रणाली का मकसद लोगों को अपनी बचत की आदत को बढ़ावा देना था | इस पेंशन प्रणाली के अंतर्गत जो भी व्यक्ति सरकार द्वारा 1 जनवरी 2004 से पूर्व नियुक्त किए गए होंगे सिर्फ उन व्यक्तियों को ही अपने कार्यकाल के पश्चात पेंशन का लाभ मिल सकता था वहीं 1 जनवरी 2004 या उसके बाद नियुक्त किए गए व्यक्तियों को सरकार द्वारा लाए गए इस पेंशन योजना के लाभ से वंचित रखना था ताकि उनमें उनके सेवानिर्वित आय में बचत की आदत आए | इस योजना को अगर राजनीतिक रूप में कहे तो ये कह सकते है की साल 2004 से पूर्व नियुक्त किए गए तमाम कर्मी जो इस सरकारी प्रभाव के अंतर्गत आते है उन्हें यह लाभ होगा लेकिन साल 2004 के शुरुआती दिनों से या उसके बाद नियुक्त किए कर्मियों को इसका लाभ नहीं होगा | ब्लूमबर्ग क्विंट के द्वारा जारी किए गए आकड़ो के मुताबिक हमारे देश में प्रतिवर्ष औसतन 1.2 करोड़ लोग (12 मिलियन) लोग नौकरी करते है | इनमें अगर एक अनुमानित रूप से 2 मिलियन यानि की तक़रीबन 20 लाख लोग भी प्रतिवर्ष सरकारी नौकरी करते है तो साल 2021 के जुलाई तक औसतन अनुमानित रूप से 3,51,66,662 लोग यानि की यह संख्या तक़रीबन 3 करोड़ 51 लाख 66 हज़ार 662 होती है | इन अनुमानित आकड़ो में गौर करने वाली बात यह है की साल 2004 से कुल साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोग सरकार द्वारा लाए गए इस पेंशन योजना से वंचित पाए गए | यानी की साल 2004 से जुलाई 2021 तक सरकार के द्वारा साढ़े तीन करोड़(एक अनुमानित आकड़े) से ज्यादा लोग सरकार के विभिन्न सरकारी विभागों में विभिन्न पदों पर नियुक्त किए गए | लेकिन इन आकड़ो पर अगर राजनैतिक विचार किया जाए तो इसका निष्कर्ष यह निकलता है की क्या सिर्फ इन्हीं साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा कर्मियों को सरकार के इस पेंशन योजना के अंतर्गत रहना होगा या इसके अंतर्गत जनता द्वारा निर्वाचित किए गए वो विधायक, सांसद और मंत्री भी आएंगे जो साल 2004 के शुरुआत से दुबारा निर्वाचित ना किए जा सके हो या किसी कारण वश उन्हें मंत्रिपद ना मिल सका हो लेकिन फिर भी उन्हें उनके पद के योजनाओ का लाभ मिलता जा रहा हो | ऐसे राजनितिक लाभ मुख्यतः किसी भी प्रदेश के सांसदों को संसद सदस्य वेतन , भत्ता और पेंशन अधिनियम 1954 के तहत प्रदान किए जाते है | संसद के लिए निर्वाचित किए गए सदस्यो को मोटे तौर पर वेतन भत्ते के साथ-साथ चिकित्सा ,यात्रा, उनके आवास और टेलीफोन आदि की सुविधायें भी प्रदान की जाती है | सरकार एक अनुमानित साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा जनसँख्या को जब पेंशन से वंचित कर सकती है तो सांसदों के संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम 1954 में संसोधन कर या तो इसे ख़त्म कर दे या सरकार इन जनता प्रतिनिधियों को सिर्फ तबतक लाभान्वित करे जबतक इनका कार्यकाल पूरा ना हो जाए | इनके कार्यकाल पूरा होने पर इन्हे भी पेंसन अधिनियम 2003 के अंतर्गत लाया जाए | जहाँ एक तरफ भारत सरकार को लगता है की साल 2003 के बाद सरकारी कर्मियों को पेंशन ना देकर सरकार उन्हें धन बचत करने के तरीके में निपुणता प्रदान करा देगी तो वहीं सरकार दूसरी तरफ निर्वाचित किए गए इन जनप्रतिनिधियों खासकर के जनता के द्वारा मनोनीत सांसदों को आजीवन ,उनके पेंशन का बराबर ख्याल रखती है | सरकार को जहाँ एकतरफ अनुमानित साढ़े तीन लाख सरकारी कर्मी आखों का काँटा मालुम पड़ते है जबकि 543 सांसदों का आजीवन भरण-पोषण उनका रख-रखाव उनके आने जाने एवं उनके चिकित्सा सम्बंधित करोड़ो का खर्चा केंद्र में बैठी तमाम सरकारों को नहीं दिखता | सांसदों को ये तमाम वेतन भत्ता आजीवन उनके भरण पोषण हेतु प्रदान किया जाता है | वेतन भत्ता का ये खेल सिर्फ सांसदों तक ही सीमित नहीं होता बल्कि विधायक और कई मंत्री भी इससे बच नहीं पाते |
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