29 फरवरी 2020 कौशलेंद्र राज शुक्ला
आज बशीर बद्र साहब का एक शेर याद आ गया “लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में” कल दिल्ली में तीन दिन के बाद कोई अप्रिय घटना नहीं घटी पर जो तीन दिन तक दिल्ली ने झेला उसके निशान आज भी सबूतों के तौर पर दिल्ली की सड़कों पर मौजूद हैं |सड़को पर जाली हुई गाड़िया, टूटे हुए कांच के टुकड़े, खौफ खाएं दिल्ली वासियों के चहेरे और अपनों को खोने के ग़म में रोते हुए परिजनों की तश्वीरें शायद इस बात का अंदाजा लगाने के लिए काफ़ी होंगी की हिंसा के आग की चिंगारी कितने उफान पर रही होगीं, बीते दिन के बीतते -बीतते हिंसा की कोई तस्वीर तो सामने नहीं आयी पर मौत के आकड़ों में इज़ाफ़ा हो गया, दिल्ली हिंसा में मरने वालों की संख्या 42 पहुंच गयी तो वही घायलों की संख्या 200 के पार पहुंच गई साथी – साथ दिल्ली पुलिस के अनुसार 123 एफआईआर दर्ज हो चुकी है और 623 लोगो की गिरफ़्तारी भी हो चुकी है | दिल्ली में हुई इस हिंसा की जांच अब दिल्ली पुलिस कर रहीं हैं और इसके साथ ही साथ सत्ता के हुक्मरानं भी अपने-अपने तरह से अपनी राजनीती चमकाने में लगे हैं | आज जब तीन दिन बाद दिल्ली में नफरत की आग बुजी तो गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस पर अपनी चुप्पी थोड़ी हैं और मुसलमानों के मने में उठी CAA के प्रति आशंका को दूर करने का काम भी किया है और अपने राज धर्म के पालन करने की भी बात कहीं है| वैसे तो इसे सिर्फ संजोग ही कह सकते हैं की एक दिन पहले सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नेतााओं का एक दल महामहीम रामनाथ कोविंद से मिला था और उनसे अपील की थी की वो मोदी सरकार को राजधर्म का पालन करने को कहें , तो वही दूसरी तरफ आज बीजेपी की से रविशंकर प्रसाद सामने आये और कांग्रेस को राजधर्म का पाठ पढ़ाने लगे,कांग्रेस को आईना दिखाने की बात कहने लगें, जिनकी बातों से ये साफ़ लग रहा था “जिनके घर खुद शीशे के होते है वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेका करते ” राजधर्म की कसौटी पर आज कांग्रेस है जो बीजेपी को राजधर्म का पाठ पढ़ा रही है ठीक वैसे ही जैसे कभी बीजेपी कांग्रेस को पढ़ाया करती थी। जिससे इतना तो तय की राज चाहें जिसका भी हो राजधर्म की पट्टी पढ़ाने की कवायत कभी नहीं थमेंगी और इसकी याद भी राजनितिक पार्टियों को भी तभी आती जब वो विपक्ष में होते हैं ! राजधर्म के नाम पर बीजेपी को टारगेट करने वाली सिर्फ कांग्रेस ही नहीं है बल्कि 30 साल तक महारष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी रही शिवसेना भी आज अपने मुख्यपत्र सामना में बीजेपी पर तंज कसते हुए नज़र आई। नशीहत और निशाने बाजी के इस चक्कर में नुक़सान जनता उठा रही है ,जिसका सीधा मतलब है की तीन दिन तक हिंसा की आग में झुलसने के बाद जब दिल्ली के हिंसा की चिंगारी कुछ कम होने तो इस पर राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेकने के लिए काफी मुफ़ीद नज़र आ रही है।
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.