गीता जयंती हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक पवित्र दिन है, जो भगवद गीता के जन्म का स्मरण करता है। यह हिंदू दर्शन और आध्यात्मिकता के सबसे पूजनीय ग्रंथों में से एक है। यह शुभ अवसर मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ता है, जो आमतौर पर नवंबर या दिसंबर में आता है।
भगवद गीता का महत्व
भगवद गीता, जिसे “ईश्वर का गीत” कहा जाता है, एक 700 श्लोकों का संवाद है जो कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था। यह दिव्य संवाद धर्म, कर्तव्य, भक्ति, और मोक्ष के मार्ग जैसे गहरे विषयों पर प्रकाश डालता है। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए मार्गदर्शक भी है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भगवद गीता महाभारत का एक हिस्सा है, जिसे ऋषि व्यास ने रचा। यह ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को तब दिया जब वह युद्ध के मैदान में कर्तव्य और नैतिकता को लेकर असमंजस में थे। गीता का उद्देश्य है अर्जुन को यह सिखाना कि अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी फल की आसक्ति के करना चाहिए।
गीता जयंती का उत्सव
- गीता पाठ: इस दिन भक्त एकत्र होकर भगवद गीता के श्लोकों का पाठ करते हैं।
- भजन और कीर्तन: भगवान श्रीकृष्ण की महिमा में गीत गाए जाते हैं।
- प्रवचन और चर्चा: विद्वान और आध्यात्मिक गुरु गीता के उपदेशों की व्याख्या करते हैं।
- पूजा और अनुष्ठान: विशेष पूजा और हवन किए जाते हैं, विशेषकर कुरुक्षेत्र में।
- दान और सेवा: इस दिन लोग जरूरतमंदों को दान और सेवा करके पुण्य कमाते हैं।
आधुनिक जीवन में गीता का महत्व
भगवद गीता के उपदेश कालातीत और सार्वभौमिक हैं। ये हमें सिखाते हैं:
निष्काम कर्म: फल की इच्छा किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना।
संतुलन: सफलता और असफलता में समान भाव रखना।
आत्मबल: भय और संदेह को आत्म-ज्ञान और भक्ति से दूर करना।
कुरुक्षेत्र में उत्सव
कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में गीता जयंती का उत्सव विशेष रूप से भव्य होता है। दुनिया भर से तीर्थयात्री यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं और आध्यात्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं।
निष्कर्ष
गीता जयंती केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमें सत्य, शांति और ज्ञान की ओर प्रेरित करने वाला एक पवित्र अवसर है। गीता के उपदेशों को अपनाकर हम अपने जीवन को स्पष्टता, उद्देश्य और सामंजस्य से भर सकते हैं।
Jeeya
BJMC 3
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