30 दिसंबर 2019 कौशलेंद्र राज शुक्ला
बात ज्यादा पुरानी नहीं है बीते रोज की है।जगह थी रांची का मोराबादी मैदान और मौका था सूबे के 11वे मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह का। जहां हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो वही मंत्रिमंडल के सहयोगी के रूप में कांग्रेस के दो और राष्ट्रीय जनता दल के एक-एक विधायक ने भी शपथ ली। हेमंत सोरेन के साथ पाकुड़ से कांग्रेस विधायक आलमगीर आलम, लोहरदगा से कांग्रेस विधायक रामेश्वर उरांव और चतरा से राजद विधायक सत्यानंद भोक्ता ने मंत्री पद की शपथ ली। अगर झारखंड का राजनीतिक इतिहास उठाकर देखा जाए तो पता चलता है की आलमगीर आलम झारखंड के स्पीकर भी रह चुके हैं।
कल हेमंत सोरेन विपक्ष के दिग्गजों का जमावड़ा लगा कर बड़े गदगद थे लेकिन उनके सामने चुनौती यह है कि इस गठबंधन को वह कैसे आगे बरकरार रखेंगे । हेमंत का मंत्रिमंडल कैसा होगा ,क्या डिप्टी सीएम के लिए कोई चेहरा होगा ,स्पीकर किस पार्टी का होगा यह कई बड़े सवाल है जो अब झारखंड की सियासत में कुछ दिन छाए रहेंगे ।खैर इन सवालों के जवाब तो वक्त के साथ में मिल जाएंगे।अगर झारखंड के 19 साल के इतिहास को देखा जाए तो पता चलता है कि सोरेन परिवार पांचवी बार सत्ता में आया है। हेमंत सोरेन (44) के पिता शिबू सोरेन सूबे में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि हेमंत ने अब राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री की कमान संभाली है। इससे पहले वे वर्ष 2013 में मुख्यमंत्री बने थे। तब सरकार मात्र 1 साल 8 महीने और 15 दिन चली थी। खैर यह सब तो आप कल के प्राइमटाइम में भी देख चुके होंगे अब बात असल मुद्दे की करते हैं कल हेमंत सुरेन के शपथ ग्रहण में विपक्ष के कई नामी शामिल थे। एक शक्ति प्रदर्शन की तस्वीर भी सामने आई जिसमें विपक्षी एकता की ताकत देखने को मिली ।जिसने रांची से लेकर दिल्ली तक की सियासत को हिला कर रख दिया । किसी ने इसे मोदी के विरोधियों की नई टीम बताया तो कुछ बुद्धिजीवियों ने इसे 4 दिन की चांदनी वाली कहावत कह कर छोड़ दिया। जानकारी के लिए आपको बता दें कि इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी पहुंचीं। वाम नेताओं में सीतराम येचुरी, डी. राजा और अतुल अंजान ने भी शिरकत की। इसके अलावा डीएमके के अध्यक्ष स्टालिन, सांसद टी आर बालू, सांसद कनिमोझी भी पहुंचीं।
राजद के तेजस्वी यादव, शरद यादव, आप सांसद संजय सिंह भी रांची पहुंचे। इसके अलावा कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, सुबोध कांत सहाय, एनसीपी नेता सुप्रिया सुले थी।
गौर फरमाने वाली बात यह है कि कई नामी एक साथ दिखे पर कुछ इस समारोह से किनारा करते भी दिखे जैसे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अभी हाल ही में महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हुए और बीजेपी का साथ छोड़ने वाले शिवसेना प्रमुख और मौजूदा समय में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ,राजनीति के सबसे पुराने खिलाड़ी शरद पवार और उत्तर प्रदेश में अपनी डूबती साख को बचाने में लगी बसपा सुप्रीमो मायावती। प्रियंका गांधी भी वैसे मौजूद नहीं थी लेकिन राहुल गांधी के पहुंचने पर उनकी हाजरी लग गई। हालांकि मायावती और अखिलेश को दोबारा एक साथ लाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या यह जो तस्वीर कल रांची से लेकर पूरे देश भर में वायरल होकर जो सुर्खियां बटोर रही है क्या वह सच में मोदी के विरोधियों की एक नई टीम बनती नजर आ रही है। अगर आपकी याद दाश्त थोड़ी पक्की हो तो आपको याद दिलवा दूं कि ऐसे ही एकजुटता की एक तस्वीर 23 मई 2018 को वायरल हुई थी कर्नाटक से जब तीसरे नंबर पर रहकर एचडी देव गौड़ा ने सरकार बनाई थी तब भी इसी तरीके से विपक्ष के नेताओं का मेला लगा था लेकिन हालत 11 -12 महीने बाद यह हो गई कि सरकार के पास विधायक ही नहीं बचे । नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने कर्नाटक में सरकार बना ली। अब देखना यह दिलचस्प होगा की अखंड विपक्ष का ट्रेलर जो झारखंड में कल रिलीज हुआ है उसकी पिक्चर क्या सियासी बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखा पाएगी या नहीं !!या फिर विपक्ष का यह मेगा शो एक बार फिर फ्लॉप साबित होगा।
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