अनुष्ठा सिंह,
नई दिल्ली, 08 जून 2020 …
कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे भारत में उपचार के साथ – साथ लॉकडाउन जैसे जरूरी कदम लागु किया गया. लोग घरों में बंद हैं और सब कुछ जैसे थम गया है लेकिन आंखिर तक देश रुका रहेगा. भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक लगे इस ब्रेक और कोरोना वायरस के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है. इस बीच चिंता, डर, अकेलेपन का माहौल बन गया है और लोग दिन-रात इससे जूझ रहे हैं.
इन स्थितियों का असर ये हुआ कि लोगों के दिलों दिमाग में स्ट्रेस का गहरा प्रभाव बढ़ता जा रहा है. लेकिन ज़्यादा स्ट्रेस, डिस्ट्रेस बन जाता है. ये तब होता है जब हमें आगे कोई रास्ता नहीं दिखता. घबराहट होती है, और हम अकेला महसूस करने लगते हैं. फ़िलहाल इस कोरोना नामक महामारी को लेकर हम इतनी उलझन में हैं कि कब तक सब ठीक होगा, पता नहीं. इस तनाव का असर शरीर, दिमाग़, भावनाओं और व्यवहार पर पड़ता है. हर किसी पर इसका अलग-अलग असर होता है.
कभी लोगों की चिंता, ग़ुस्सा, डर, चिड़चिड़पना, तो कभी उदासी और उलझन से मन व्यथित रहता है. हीं नहीं दिमाग़ पर इसका गहरा प्रभाव भी पड़ता है और बार-बार मन में बुरे ख़्याल आता रहता है. जैसे कभी नौकरी जाने की डर सताती है तो कभी पैसों की कमी का ख्याल आता है.
जब लॉकडाउन हुआ था तो शुरू में तो अच्छा लगा कि पूरे परिवार के साथ रह पाएंगे और उस वक़्त कोरोना वायरस का डर भी ज्यादा नहीं था. लेकिन, अब रोज़-रोज़ ख़बरें देखकर डर लगता है. लोगों के मन में बार – बार एक सवाल उठता है कि परिवार में किसी को कोरोना वायरस हो गया तो. अगर सरकार ने लॉकडाउन खोल दिया तो सब लोग क्या करेंगे. इन सब के बिच लॉकडाउन भी खोल दिया गया जिससे देश में कोरोना खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है…
गज़ब का दौर है कभी किसी ने सोचा नहीं था की ऐसा होगा कई लोग तो इस वक़्त अपने घरों और दोस्तों से भी दूर हैं.
लोगों के लिए पूरा माहौल बदल गया है. अचानक से स्कूल, ऑफिस, बिजेनस बंद हो गए, बाहर नहीं जाना है और दिनभर कोरोना वायरस की ही ख़बरें देखनी हैं. लोगों को परेशान करने वालीं तीन वजहें हैं. एक तो कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर, दूसरा नौकरी और कारोबार लेकर अनिश्चितता और तीसरा लॉकडाउन के कारण आया अकेलापन.
कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती की खबरें आ रही हैं. इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है. जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.
सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर खुद को कैसे करेंगे मजबूत ? सरकार द्वारा उद्योगों के लिए घोषित पैकेज से लोग उत्साहित हैं, लेकिन उनका असली असर तब होगा जब जनता के हित में उसे खर्च किया जायेगा…..
लेकिन इतना तो सच है की इस संकट ने हमें सिखाया है कि सामान्य होने का मतलब यह है कि हम इंसान हैं. हम चुनौतियों से संघर्ष करते हैं और आगे करते रहेंगे…..
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