11 दिसंबर 2019, शबाना बानो
भारत की अर्थव्यवस्था दिन पे दिन बुरे स्तर पर गिरती जा रही है जिसे लेकर आए दिन कोई ना कोई सिर्फ चिंता ही व्यक्त कर रहा है. और इसके इस तंगी को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठते दिख रहे. रघुराम राजन ने भी अर्थव्यवस्था पर अपनी बात कही. आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय ‘सुस्ती’ के चंगुल में फंसी है और इसमें बेचैनी और अस्वस्थता के गहरे संकेत दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस समय अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से लिये जाते हैं और मंत्रियों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. ‘इंडिया टुडे’ मैगजीन में छपे एक आर्टिकल में राजन ने भारत की कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था को सुस्ती से बाहर निकालने के लिये अपने सुझाव दिये हैं. उन्होंने लगातार सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिये पूंजी क्षेत्र, भूमि और श्रम बाजारों में सुधारों को आगे बढ़ाने की अपील की है. इसके साथ ही उन्होंने निवेश और वृद्धि को बढ़ाने पर भी जोर दिया है. उन्होंने कहा कि भारत को विवेकपूर्ण तरीके से मुक्त व्यापार समझौतों एफटीए में शामिल होना चाहिए ताकि कॉम्पटीशन बढ़ाया जा सके और घरेलू दक्षता को सुधारा जा सके.
राजन ने इसमें लिखा है, ‘यह समझने के लिए कि गलती कहां हुई है, हमें सबसे पहले मौजूदा सरकार के केन्द्रीकृत स्वरूप से शुरुआत करने की जरूरत है. निर्णय प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि इस सरकार में नये विचार और योजनायें जो भी सामने आ रही हैं वह सब प्रधानमंत्री के ईद-गिर्द रहने वाले लोगों और प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े लोगों तक ही सीमित हैं.’राजन ने लिखा है, ‘यह स्थिति पार्टी के राजनीतिक एजेंडे और सामाजिक एजेंडा के हिसाब से तो ठीक काम कर सकती है. क्योंकि इस स्तर पर सभी चीजें साफ तरीके से तय हैं और इन क्षेत्रों में इन लोगों के पास विशेषज्ञता भी है. लेकिन आर्थिक सुधारों के मामले में यह इतने बेहतर तरीके से काम नहीं कर सकती है. क्योंकि इस मामले में टॉप लेवल पर कोई क्लीयर एजेंडा पहले से तय नहीं है, इसके साथ ही स्टेट लेवल के मुकाबले नेशनल लेवर पर अर्थव्यवस्था किस तरह से काम करती है इसके बारे में भी जानकारी का अभाव है.’
उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारें बेशक ‘अव्यवस्थित’ गठबंधन थीं, लेकिन उन्होंने आर्थिक उदारीकरण के क्षेत्र में लगातार काम किया. राजन ने कहा, ‘सत्ता का अत्यधिक केन्द्रीकरण, मजबूत और सशक्त मंत्रियों का अभाव और एक सरल और साफ दिशा वाली नजरिए की कमी से यह तय हुआ है कि कोई भी सुधार तब ही रफ्तार पकड़ता है जबकि पीएमओ उस पर ध्यान देता है, लेकिन जब पीएमओ का ध्यान दूसरे अहम् मुद्दों की तरफ रहता है तो ये मुद्दे पीछे रह जाते हैं.’ उन्होंने लिखा है कि मोदी सरकार न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के नारे के साथ सत्ता में आई थी. इस नारे का गलत मतलब लिया जाता है. सरकार आटोमेशन की दिशा में बेहतर अभियान चला रही है. राजन ने कहा कि आर्थिक सुस्ती को दूर करने की शुरुआत के लिए यह जरूरी है कि मोदी सरकार सबसे पहले समस्या को स्वीकार करे.
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